रिपोर्ट राजेश कुमार यादव
नई दिल्ली
संसद के शीतकालीन सत्र के 17वें दिन (17 दिसंबर) को केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने 'वन नेशन, वन इलेक्शन' (एक देश, एक चुनाव) के लिए 129वां संविधान संशोधन बिल लोकसभा में पेश किया। इस विधेयक के माध्यम से देशभर में समान चुनावी प्रक्रिया लागू करने का प्रस्ताव रखा गया है।
उम्मीद है कि वे स्पीकर ओम बिरला से इस विधेयक को व्यापक विचार-विमर्श के लिए संसद की संयुक्त समिति को भेजने का अनुरोध कर सकते हैं। उधर, विपक्ष ने लगातार इस बिल का विरोध किया। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने इसे तानाशाही कदम बताया है। बिल पर बहस शुरू, जानें बड़ी बातें...
*वन नेशन, वन इलेक्शन*
लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की योजना है।
यह कदम चुनावी खर्चे को कम करने और चुनाव प्रक्रिया को सरल और कुशल बनाने की दिशा में है।
*केंद्र शासित प्रदेशों से जुड़े बिल*
द गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज एक्ट-1963
द गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली-1991
द जम्मू एंड कश्मीर रीऑर्गनाइजेशन एक्ट-2019
इन कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव रखा गया है।
*जम्मू-कश्मीर का मुद्दा*
संशोधन के जरिए जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की संभावना है।
*सदन में विरोध की गूंज*
समाजवादी पार्टी (सपा) सांसद धर्मेंद्र यादव ने बिल का विरोध करते हुए कहा कि यह बिल देश में तानाशाही लाने की कोशिश है।
शिवसेना (UBT) नेता अनिल देसाई ने कहा कि यह बिल संघवाद पर सीधा हमला है और राज्यों की सत्ता को कमजोर करेगा। भारत गणराज्य राज्यों का एक संघ है, ऐसे बिल का कोई औचित्य नहीं है।
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि यह बिल संविधान के मूल ढांचे पर हमला है। मैं सरकार से आग्रह करता हूं कि इसे वापस लिया जाए।
*बिल के समर्थन में कौन-कौन?*
चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली टीडीपी (तेलुगु देशम पार्टी) ने कहा कि हम इस बिल को अटूट समर्थन देते हैं। यह चुनावी प्रक्रिया को बेहतर बनाएगा।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुझाव दिया था कि इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजा जाए ताकि सभी पहलुओं पर विचार किया जा सके।
*विपक्ष के तर्क*
•संघीय ढांचे पर खतरा: विपक्ष का कहना है कि 'वन नेशन, वन इलेक्शन' राज्यों के अधिकारों पर सीधा हमला है। इससे राज्यों की स्वतंत्र चुनाव प्रक्रिया कमजोर होगी।
•तानाशाही का आरोप: सपा और कांग्रेस का तर्क है कि यह बिल लोकतंत्र की बहुलता को खत्म कर एकदलीय शासन को बढ़ावा देगा।
•संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन: मनीष तिवारी ने इसे संविधान के मूल सिद्धांतों और संघीय ढांचे का उल्लंघन बताया।
*सरकार के तर्क*
•चुनावी खर्च में कमी: बार-बार चुनाव कराने से खर्च बढ़ता है। एक साथ चुनाव से इस खर्च में भारी कटौती होगी।
•प्रशासनिक कार्य में सुधार: चुनावी आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य रुक जाते हैं।
•लोकतंत्र को मजबूत बनाना: सरकार का मानना है कि एक देश, एक चुनाव से देश में सामंजस्य और राजनीतिक स्थिरता आएगी।