रिपोर्ट राजेश कुमार यादव
अयोध्या उत्तर प्रदेश
रामलला का सूर्य अभिषेक दोपहर 12 बजकर 01 मिनट पर हुआ। सूर्य की किरणें रामलला के चेहरे पर पड़ीं। करीब 75 मिमी का टीका राम के चेहरे पर बना। दुनिया भक्ति और विज्ञान के अद्भुत संगम को निहारती रही। यह धर्म और विज्ञान का चमत्कारिक मेल रहा। इस सूर्य तिलक के लिए वैज्ञानिकों ने कई महीने से तैयारी की थी। इसके लिए कई ट्रायल किए गए। आज दोपहर में जैसे ही घड़ी में 12 बजकर 01 मिनट हुए सूर्य की किरणें सीधा राम के चेहरे पर पहुंच गईं। 12 बजकर एक मिनट से 12 बजकर 6 मिनट तक सूर्य अभिषेक होता रहा। पूरे पांच मिनट तक यह प्रक्रिया चली।
वैज्ञानिकों ने अयोध्या के आकाश में सूर्य की गति अध्ययन किया है। सटीक दिशा आदि का निर्धारण करके मंदिर के ऊपरी तल पर रिफ्लेक्टर और लेंस स्थापित किया है। सूर्य रश्मियों को घुमा फिराकर रामलला के ललाट तक पहुंचाया गया। सूर्य की किरणें ऊपरी तल के लेंस पर पड़ीं। उसके बाद तीन लेंस से होती हुई दूसरे तल के मिरर पर आईं। अंत में सूर्य की किरणें रामलला के ललाट पर 75 मिलीमीटर के टीके के रूप में दैदीप्तिमान होती रहीं और ये लगभग पांच मिनट तक टिकी रहीं।
यह तकनीक अपनाई गई
सूर्य तिलक के लिए आईआईटी रुड़की सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ने एक खास ऑप्टोमैकेनिकल सिस्टम तैयार किया । इसमें मंदिर के सबसे ऊपरी तल (तीसरे तल) पर लगे दर्पण पर ठीक दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें पड़ी । दर्पण से 90 डिग्री पर परावर्तित होकर ये किरणे एक पीतल के पाइप में गयी । पाइप के छोर पर एक दूसरा दर्पण लगा है। इस दर्पण से सूर्य किरणें एक बार फिर से परावर्तित हुई और पीतल की पाइप के साथ 90 डिग्री पर मुड़ गयी ।
तीन लेंसों से होकर गुजरीं किरणें
दूसरी बार परावर्तित होने के बाद सूर्य किरणें लंबवत दिशा में नीचे की ओर गयी । किरणों के इस रास्ते में एक के बाद एक तीन लेंस पड़े है , जिनसे इनकी तीव्रता और बढ़ गयी । लंबवत पाइप जाती है। लंबवत पाइप के दूसरे छोर पर एक और दर्पण लगा है। बढ़ी हुई तीव्रता के साथ किरणें इस दर्पण पर पड़ी और पुन: 90 डिग्री पर मुड़ गयी । 90 डिग्री पर मुड़ी ये किरणें सीधे राम लला के मस्तक पर पड़ी । इस तरह से राम लला का सूर्य तिलक पूरा हुआ ।