भारत में चुनाव, फेसबुक पर पानी की तरह बहता पैसा, 2014 से लेकर अब तक के कई आंकड़े

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रिपोर्ट राजेश कुमार यादव

Head editer Sctcnews

नई दिल्ली

लोकतांत्रिक देशों में जनता के वोट से ही सरकारें बनतीं और बिगड़ती हैं. प्रचार अभियान पूरे चुनाव का अहम हिस्सा है. दो दशक पहले तक टीवी और अखबार ही प्रचार का सबसे बड़ा माध्यम थे.

 अखबार जहां 24 घंटे में एक बार छपकर जनता तक पहुंचते हैं, तो टेलीविजन 24 घंटे की खबरों को दिखाते हैं. लेकिन अब सूचनाएं लोगों के पास सेकेंडों में पहुंच रही हैं और इसका सबसे बड़ा माध्यम सोशल मीडिया है. 

 साल 2014 के लोकसभा चुनाव से भारत में अब चुनाव का असली मैदान सोशल मीडिया बन गया है. वाट्सएप  फेसबुक, एक्स (पहले ट्विटर), इंस्टाग्राम, यूट्यूब और गूगल जैसे प्लेटफॉर्म चुनाव के नतीजे बदल देने तक में अहम भूमिका निभा रहे हैं.

 साल 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने सोशल मीडिया को सबसे बड़ा हथियार बनाया था. उस समय सत्ता में काबिज कांग्रेस इसकी ताकत समझ नहीं पाई और यही हाल बाकी विपक्षी दलों का भी रहा. 

 लेकिन 2019 का लोकसभा चुनाव आते-आते कांग्रेस सहित दूसरी पार्टियां भी इस खेल में माहिर हो गईं. साल 2015 के बाद सोशल मीडिया पर राहुल गांधी के भी फॉलोवर्स बड़ी संख्या में बढ़ गए. भारत में इंटरनेट जैसे-जैसे लोगों तक पहुंचा, राजनीतिक दल भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पहुंच बढ़ाने लगे.

 अब शायद ही कोई ऐसी पार्टी होगी जो सोशल मीडिया पर न हो. बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी जैसे बड़े राजनीतिक दलों के अपने 'साइबर आर्मी' तैयार कर ली है. ये टीमें 24 घंटा किसी न किसी एजेंडा या प्रोपेगेंडा फैलान में लगी रहती हैं. सेकेंडों में कोई भी सूचना करोड़ों लोगों तक पहुंच रही है. युवाओं इस सोशल मीडिया पर ज्यादा एक्टिव रहते हैं और इनको लुभाने के लिए सोशल मीडिया ही सबसे आसान माध्यम है. 

 2019 में आए एक सर्वे की मानें तो साल 2014 से पहले दस वोटरों में सिर्फ एक ही फेसबुक का इस्तेमाल कर रहा था. लेकिन साल 2017 तक आते-आते इसमें 20 प्रतिशत की बढ़त हुई यानी संख्या दोगुनी हो गई. इसके बाद 2019 के चुनाव के दौरान इसमें 32 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई. 

 इसी तरह का आंकड़ा वाट्सएप को लेकर भी था और 2017 में 22 फीसदी और 2019 तक आते-आते 34 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई. फेसबुक और वाट्सएप की तरह ही यूट्यूब के यूजर भी इस दौरान इसी प्रतिशत में बढ़े. साल 2019 में  31 फीसदी वोटर इसका इस्तेमाल कर रहे थे. वहीं इंस्टाग्राम इस्तेमाल करने वालों की संख्या 15 फीसदी थी. 

 बात करें एक्स यानी ट्विटर की तो साल 2014 में 2 फीसदी वोटर इसका इस्तेमाल कर रहे थे लेकिन 2019 में ये संख्या 12 फीसदी तक पहुंच गई. हर आठ में से एक वोटर इस सोशल मीडिया पर एक्टिव था.

 कहां कौन कितना खर्च कर रहा पैसा

बीते लगभग 5 सालों यानी 2019 से लेकर 2023 के बीच भारतीय जनता पार्टी (BJP)ने फेसबुक पर प्रचार के लिए 33 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. हालांकि ये सभी एडवाइटजर्स की ओर से फेसबुक पर खर्च की गए कुल पैसे का 10 फीसदी है.

 इसी दौरान कांग्रेस ने 10.58 करोड़, तृणमूल कांग्रेस ने 8.04 करोड़, डीएमके ने 4.31 करोड़ खर्च किए हैं. ये पूरा डाटा बिजनेस लाइन की ओर से किए गए एक रिसर्च पर आधारित है. ये फेसबुक पर उन पेजों का डाटा है जो पार्टियों के नाम से चलाए जा रहे हैं. इसमें नेताओं के व्यक्तिगत पेज का डाटा शामिल नहीं है.

worldpopulationreview.com की मानें तो भारत दुनिया का सबसे बड़ा फेसबुक यूजर वाला देश है. फिलहाल ये संख्या 31.5 करोड़ है. अब इस आंकड़े से समझ सकते हैं कि फेसबुक प्रचार का कितना बड़ा माध्यम है और राजनीतिक दल फेसबुक पर क्यों पैसा खर्च कर रहे हैं.

 अगर सभी एडवरटाइजर्स को मिला दें तो पांच सालों में फेसबुक पर प्रचार के लिए 360 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. हालांकि खास बात ये है कि फेसबुक की तुलना में गूगल एड ज्यादा सस्ता माध्यम है. लेकिन राजनीतिक पार्टियां फेसबुक पर ज्यादा पैसा खर्च करती हैं क्योंकि इसके माध्यम से वो आबादी के सभी हिस्सों से कनेक्ट हो सकते हैं.

 बिजनेस लाइन की मानें तो इंडियन पोलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) ने कई राजनीतिक पार्टियों के डिजिटल प्रचार का जिम्मा ले रखा है. जिसमें एआईटीसी और वाईएसआर कांग्रेस शामिल है. इसके अलावा 2021 में हुए तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में डीएमके और साल 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए भी I-PAC काम  कर चुका है.

 आधिकारिक पेज पर किसने कितना खर्च किया

द हिंदू बिजनेस लाइन के मुताबिक बीजेपी के आधिकारिक पेज पर बीते पांच साल में 10.27 करोड़ रुपया प्रचार के लिए खर्च किया गया है. इसके बाद कूप एप पर 7.2 करोड़ खर्च किए गए हैं.

 टीएमसी के पेज 'बंग्लार गोरबो ममता' पर 5.86 करोड़ खर्च किए गए हैं. फेसबुक पर राजनीतिक दलों से जुड़े वो 15 पेज जिन पर सबसे ज्यादा पैसा खर्च किया गया उनमें 6 पेज बीजेपी और 2 पेज कांग्रेस के हैं.

 इसके अलावा दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के खिलाफ प्रचार करने वाले पेज 'एक धोखो केजरीवाल ने' पर 3.19 करोड़ रुपये बीते 5 सालों में खर्च किए हैं.

 इस पेज का नाम पहले 'पलटू एक्सप्रेस' था. इसके अलावा एक पेज 'उल्टा चश्मा' नाम से है जिसमें विपक्षी गठबंधन में शामिल राहुल गांधी, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं के खिलाफ प्रचार होता है. इस पर बीते पांच साल में 1.93 करोड़ रुपया खर्च किया गया है.

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