कूनो से आई बुरी खबर, एक और चीते की मौत, पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद होगा कारण का खुलासा

A G SHAH . Editor in Chief
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रिपोर्ट राजेश कुमार यादव

स्योर मधयप्रदेश

मध्‍य प्रदेश में श्‍योपुर जिले के कूनो राष्‍ट्रीय उद्यान में मंगलवार को एक और नर चीते ‘शौर्य’ की मौत हो गई है. लायन प्रोजेक्‍ट के निदेशक ने बताया कि नामीबिया से लाए गए चीतों में से शौर्य की मौत का दोपहर 3 बजकर 17 मिनट पर हुई. उसे अचेत हालत में देखे जाने के बाद मॉनिटरिंग टीम ने ट्रैंकुलाइज किया था. इसके बाद उसे सीपीआर ( कॉर्डियो पल्‍मोनरी रिससिटेशन) दिया गया था, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका. इस चीते के पोस्‍टमार्टम के बाद उसकी मौत का सही कारण पता चल सकेगा.

सूत्रों ने बताया कि चीता बेहद कमजोर था और उसे कुछ समय के लिए होश आया था, लेकिन उसने दम तोड़ दिया. कूनो में अब तक शावक और चीतों की मौत का आंकड़ा 10 पर पहुंच गया है. केंद्र सरकार चीतों के पुनर्वास का लगातार प्रयास कर रही है. इसी कड़ी में दक्षिण अफ्रीका से 12 और नामीबिया से 8 चीते भारत मंगाए गए थे. नामीबिया से सितंबर 2022 में चीते भारत लाए गए थे. उस दौरान खुद पीएम मोदी ने उनको जंगल में छोड़ा था. इस बीच सरकार के इन प्रयासों को फिर झटका लगा है.

कूनो में 7 चीता समेत 3 शावकों की हो चुकी है मौत

कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से कुल 20 चीते लाए गए थे और उनमें से 7 चीता और 3 शावकों की मौत हो चुकी है. इनमें से एक मादा चीजा ज्‍वाला ने 4 शावकों को जन्‍म भी दिया था. 26 मार्च 2023 को मादा चीता साशा को किडनी इंफेक्शन के कारण बचाया नहीं जा सका था तो 23 अप्रैल 2023 को नर चीता उदय ने दम तोड़ा था. इसके बाद 9 मई को दक्षा नाम मादा चीता को नर चीतों ने बुरी तरह घायल कर दिया था, जिससे उसकी मौत हो गई थी. इसके बाद मादा चीता के 4 शावकों में से एक की मौत 23 मई हो गई थी और 25 मई को दो अन्‍य शावकों ने भी दम तोड़ दिया था. 11 जुलाई को चीता तेजस ने अन्‍य के साथ हिंसक झड़प में जान गवां दी थी. 2 अगस्‍त 2023 को एक अन्‍य चीता और अब 16 जनवरी 2024 को शौर्य चीता की मौत हुई है.

एशियाई चीतों को 1952 में विलुप्‍त घोषित किया गया था

बता दें कि भारत में करीब 70 साल पहले चीतों को विलुप्‍त घोषित कर दिया गया था. भारत समेत एशिया में 19वीं शताब्दी से पहले तक पाई जाने वाली प्रजाति को ‘एशियाई चीता’ कहा जाता था. अब एशियाई चीता केवल ईरान में बचे हैं. शिकार के कारण ज्यादातर देशों में एशियाई चीते लुप्त हो गए. अगर भारत की बात की जाए तो 1947 में सरगुजा के राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने आखिरी तीन चीतों का शिकार किया था. इसके बाद 1952 में एशियाई चीतों को भारत में लुप्त घोषित किया गया था.

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