तू ताना कभी न देता मुझे दहेज़ का अगर देख लेता छाले मेरे पिता के हाथ पे..!!

A G SHAH
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राजेश कुमार यादव की कलम से

दहेज़ के खिलाफ ना तो कोई बोलना चाहता है ना ही कोई सुनना चाहता है क्योंकि इसमें हम सब अपना अपना स्वार्थ देखते है! दहेज़ प्रथा नहीं लोगों की सोच को इतना खोखला कर दिया है!यह अब कोई नई बात नहीं रह गई है कि दहेज़ एक सामाजिक बुराई है और इसके लिए बहुत ही जघन्य अपराध होते हैं!इस समाज में विवाहों में दहेज़ को भेंट के रूप में देखा जाता है लेकिन इसकी वजह से बहुत से घर बिखर जाते हैं! परंपरा के इस पहलू ने गरीब परिवारों का बहुत कुछ उजाड़ा है!समाज में बहुत से परिवार ऐसे भी होते हैं जो पहले जहेज़ तो नहीं लेते हैं लेकिन शादी हो जाने के बाद लड़की को बहुत ही परेशान करते हैं दहेज के लिए! दहेज़ प्रथा महिलाओं के खिलाफ अपराध को भी जन्म देती हैं! इसमें भावनात्मक शोषण और चोट से लेकर मौत तक शामिल है!सरकार ने दहेज प्रथा को हटाने के लिए कानून लागू तो कर दिया फिर दहेज़ लेना बंद नहीं हुआ है! क्या सरकार या समाज को इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत कभी लगती है?दहेज़ को समाप्त करना है तो लोगों की सामाजिक और नैतिक चेतना को प्रभावी बनाना होगा महिलाओं को शिक्षा तथा आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करना होगा और दहेज़ प्रथा के खिलाफ कानून को प्रभावी ढंग से लागू करना होगा लेकिन समाज में आज जब हर तरफ दहेज़ की मारामारी है ऐसे में कई परिवार ऐसे भी हैं जो जहेज़ लेने में विश्वास या सोच नही रखते वाकई में ऐसे परिवार काबिले तारीफ है और यह परिवार समाज के लोगों के लिए एक प्रेरणा है और साथ ही दहेज़ लोभियों के लिए एक अच्छी सीख है।


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