रिपोर्ट राजेश कुमार यादव *अहमदाबाद
फिर उसका ये ही हाल होता है (पैरो के नीचे) । शायद ट्रॉफी की ही बदकिस्मती हो । वर्ना तुझे चाहने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी थीं, जानती हो
.अगर तुम मेरे पास होतीं तो तुम्हें सर आंखों पर बिठाकर रखता, तुम्हारे पैर चूमता तुम्हें बाहों में भरता, तुम्हें दूर रखता उन सबसे जो तुम्हें मैला करता या तुम्हारी पवित्रता को नष्ट करता मगर
तुमने चुना उसे जो तुम्हारी मर्यादा तक नहीं समझता, जो तुम्हें पैरों तले रौंद रहा है। भले ही तुम उसकी हो चुकीं हो मगर मुझसे ये दृश्य नहीं देखा जा रहा है