नई दिल्ली से राजेश कुमार यादव की रिपोर्ट
सच कहूं तो अब बस में चढ़ने का मन नहीं होता। 10 में से 7 ड्राइवर तो स्टॉप पर महिलाओं को देखकर बस रोकते ही नहीं। किसी तरह बस में चढ़ जाओ, तो कंडक्टर टिकट ऐसे फेंककर देता है, जैसे खैरात दे रहा हो। उस पर भी कमेंट करता है, पिंकी लो अपना फ्री वाला पिंक टिकट।
मेल पैसेंजर को रिजर्व सीट से उठने को बोलो तो कहते हैं- पैसे दिए हैं, आपकी तरह फ्री में नहीं जा रहे। ...
.दिल्ली के प्रताप नगर मेट्रो स्टेशन के स्टॉप पर बस का इंतजार कर रहीं होतीं दीपाली टोंक अपनी व्यथा बताती हैं, तब तक वे 2 बसों को हाथ दे चुकीं थीं, लेकिन बस रुकी नहीं।
दीपाली DLF मोड़ के पास रहती हैं और ऑफिस जाने के लिए रोज सुंदर नगरी के लिए बस पकड़ती हैं। ऑफिस से लौटते समय गलती से प्रताप नगर मेट्रो स्टेशन के बस स्टॉप पर पहुंच गई थीं। दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन यानी DTC की बसों में महिलाओं के लिए सफर फ्री है, लेकिन उनका आरोप है कि फ्री टिकट की वजह से कंडक्टर और दूसरे यात्री उनसे बुरा बर्ताव करते हैं। दीपाली की तरह बाकी महिलाओं के आरोप की पड़ताल के लिए एक निजी न्यूज एजेंसी के पत्रकारों ने सीमापुरी और दिलशाद गार्डन में 2 दिन DTC की बस में सफर किया। पहले दिन वे सुबह करीब 8 बजे हम सीमापुरी डिपो क्लस्टर 4 पर पहुंचे। सीमापुरी डिपो के बस स्टॉप पर कई महिलाएं काम पर जाने के लिए बस का इंतजार कर रही हैं। यहां से वे एक बस में बैठे और जेएनके पॉकेट बस स्टॉप पर उतरे। यहां भी कई महिला सफाईकर्मी बस का इंतजार कर रही थीं। बुजुर्ग महिला सर्वेश ने कहा, बस वाले हमें देखकर स्टॉप पर नहीं रुकते हैं। 8 बसों के निकलने के बाद जेएनके पॉकेट स्टॉप पर एक बस रुकी। आनंद विहार जाने वाली इस बस में हम भी सवार हो गए।
दिलशाद गार्डन बस स्टॉप पर 10-11 महिलाएं खड़ी थीं। उन्होंने हाथ दिया, लेकिन ड्राइवर ने बस नहीं रोकी। अगले 2 स्टॉप पर भी ड्राइवर बिना बस रोके आगे बढ़ गया, जबकि वहां भी कई महिलाएं खड़ी थीं। बस में कई सीटें खाली थीं। स्टॉप के नजदीक बस पहुंची, तो ड्राइवर राइट लेन से तेज रफ्तार में निकाल ले गया।
प्रताप नगर बस स्टैंड पर खड़ी दीपाली ने बताया, मैं रोज DLF मोड़ बस स्टॉप से सुंदर नगरी के लिए सुबह 8 बजे 205 नंबर की बस पकड़ती हूं।
मेरा ऑफिस 10 बजे से है, लेकिन बस वाले जल्दी रुकते नहीं हैं, इसलिए पहले निकलती हूं। दीपाली ने कहा, फ्री सफर शुरू हुआ, तभी से ड्राइवर और कंडक्टर का रवैया बदल गया। कई बार ऐसा हुआ कि मैं हाथ देती रहती हूं, फिर भी बस नहीं रोकते। कई बार बदमाशी करते हुए स्टॉप से काफी आगे रोकते हैं। भागकर बस पकड़ने में डर लगता है कहीं गिर न जाऊं। कंडक्टर कमेंट करते हैं क्या? दीपाली ने बताया, एक दिन शाम 7 बजे ऑफिस
से घर लौट रही थी। मैंने पिंक कलर के कपड़े पहने थे। कंडक्टर चिल्लाते हुए बोला- पिंकी, लो अपना फ्री वाला पिंक टिकट। बस में काफी लोग थे,
किसी को कंडक्टर की ये बात खराब नहीं लगी। मैंने कंडक्टर से गुस्से में कहा, पिंकी किसे बुला रहे हो? मेरा गुस्सा देखकर उसने मुझसे माफी मांगी।
दीपाली ने कहा, ऐसा मैंने कई बार देखा है। कंडक्टर महिलाओं के कपड़ों पर कमेंट करते हैं, फ्री टिकट का मजाक बनाते हैं। एक बार ऐसे ही मैं बस में चढ़ी तो कंडक्टर बोला- चलो-चलो महिलाएं आ गई हैं, इनको टिकट दो, फिर उसने मेरे ऊपर टिकट फेंक दिया। उसके बोलने का लहजा ऐसा था, जैसे हमें खैरात में टिकट दे रहा हो।
हसीना सीमापुरी डिपो से आनंद विहार के लिए रोज बस पकड़ती हैं। काम पर जाने के लिए उन्हें सुबह 6 बजे घर से निकलना पड़ता है। सीमापुरी बस डिपो का स्टॉप उनके घर के नजदीक है। हसीना ने बताया, 10 में से 6-7 बस वाले तो रुकते ही नहीं, ऐसे में आधे-पौन घंटे इंतजार करने में ही बर्बाद हो जाता है।
हसीना दोपहर करीब 12 बजे घर लौटती हैं। वो कहती हैं, काम से लौटते वक्त कपड़े थोड़े गंदे हो जाते हैं। बस वाले देखकर बैठाने को तैयार नहीं होते,
किसी तरह बैठ जाओ तो मर्द धक्का देकर कभी आगे तो कभी पीछे जाने को बोलते हैं। एक बार महिलाओं के लिए रिजर्व सीट पर एक लड़का बैठा था।
मेरे पैरों में बहुत दर्द था, तो उससे उठने के लिए बोल दिया। वो चिल्लाने लगा, पैसे दिए हैं, आपकी तरह फ्री में सफर नहीं कर रहा। फ्री का टिकटvलेने वालों को सीट नहीं मिलती। उसकी इस हरकत पर बाकी लोग हंसते रहे, किसी ने उसका विरोध नहीं किया।
नूर सुबह 5 बजे सीमापुरी से जनकपुरी जाने के लिए निकलती हैं। पति और बेटा भी साथ में ही काम पर निकलते हैं। नूर ने कहा, रोज 400-500 रुपए तक कमा लेती हूं। बस वाले बैठा लें, तो फ्री में घर तक आ जाऊं, लेकिन वे रोकते ही नहीं। ऐसे में ऑटो लेना पड़ता है। 100 रुपए तो ऑटो के किराए में ही खर्च हो जाते हैं। बस में कैसा व्यवहार होता है? इस पर नूर ने कहा, अगर थोड़े भी पैसे होते तो कभी बस में ना चढ़ती। आधे घंटे में 10-12 बसें जनकपुरी बस स्टैंड से निकलती हैं। हर बस के लिए दौड़कर रोड पर पहुंचो, हाथ दो, फिर भी ड्राइवर बस नहीं रोकते। किसी ड्राइवर ने बस रोक दी, तो कंडक्टर से लेकर सवारियों तक का व्यवहार ऐसे होता है, जैसे हम इंसान ही नहीं हैं। नूर ने बताया, एक बार महिला सीट पर एक आदमी बैठा था। उसे हटने के लिए बोला तो गुस्सा हो गया। बोलने लगा- दूर हटो, बदबू आ रही है। फ्री में सफर करने में इतनी तो शर्म रखो कि पैसे देकर टिकट लेने वालों को न उठाओ।
जाओ, ड्राइवर के पास खड़ी हो। ऐसी हरकतें जनकपुरी बस स्टॉप पर ज्यादा होती हैं। कई बार तो स्टॉप पर खड़े आदमी दूर चले जाते हैं कि ये लोग खड़ी हैं
तो बस यहां रुकेगी ही नहीं।
शेख अकबर अली दिल्ली के न्यू सीमापुरी में रहते हैं। वो हमें दिलशाद गार्डन बस स्टॉप पर मिले। अकबर को गाजीपुर के लिए बस पकड़नी है।
अकबर ने बताया, सीमापुरी से 4 बस क्लस्टर हैं, यहां से गांधीनगर, आनंद विहार जाने वाले ज्यादा होते हैं। सुबह के वक्त महिलाएं इस स्टॉप पर ज्यादा होती हैं। अकबर ने बताया, पिछले महीने मुझे सचिवालय जाना था। 240 नंबर की बस में चढ़ा, जो कनॉट प्लेस की तरफ जाती है। बस में बहुत भीड़ थी, कंडक्टर एक सीट पर बैठा था और बगल वाली सीट पर अपना बैग रखा था। एक बुजुर्ग महिला ठीक से खड़ी नहीं हो पा रही थी।
लोगों ने कंडक्टर को बैग उठाने को कहा तो झगड़ने लगा। फिर एक लड़का खुद खड़ा हो गया और अपनी सीट पर बुजुर्ग को बैठाया। क्या महिलाओं से गलत व्यवहार देखा है? इस पर अकबर ने कहा, ये तो रोज ही होता है, एक घटना बताता हूं। एक महिला अपने बेटे के साथ बस में चढ़ी। उसने बेटे के लिए टिकट लिया और एक रुपए का छोटा वाला सिक्का कंडक्टर को दे दिया। कंडक्टर इसी बात पर गुस्सा हो गया, महिला पर सिक्का फेंककर
चिल्लाने लगा, बोला- एक तो फ्री में सफर कर रही हो, नकली सिक्का देकर बेटे को भी फ्री में ले जाना चाहती हो