रिपोर्ट राजेश कुमार यादव
नई दिल्ली
2003 के चर्चित कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में नया घटनाक्रम सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस हत्याकांड में दोषी रोहित चतुर्वेदी की समयपूर्व रिहाई के लिए दायर याचिका पर उत्तराखंड सरकार से जवाब मांगा है। जस्टिस अभय एस. ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर निर्देश दिया है कि वह याचिका पर अपना पक्ष प्रस्तुत करे। मामले की अगली सुनवाई 14 नवंबर को होगी।
अमरमणि और मधुमणि को मिली माफी, रोहित की रिहाई पर सवाल
मधुमिता शुक्ला की हत्या के इस मामले में मुख्य आरोपी पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि को पूर्व में माफी दी जा चुकी है, जबकि एक अन्य आरोपी की मृत्यु हो चुकी है। अब रोहित चतुर्वेदी की रिहाई के लिए दी गई याचिका पर शीर्ष अदालत का निर्णय उत्तराखंड सरकार के जवाब पर निर्भर करेगा। याचिका में रोहित चतुर्वेदी ने समयपूर्व रिहाई के लिए सक्षम प्राधिकारी से निर्देश की मांग की है।
बिलकिस बानो केस का संदर्भ
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने बिलकिस बानो केस का हवाला देते हुए कहा कि चूंकि मधुमिता शुक्ला हत्या मामले को उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड स्थानांतरित किया गया था, इसलिए अंतिम निर्णय लेने का अधिकार उत्तराखंड सरकार के पास है।
मधुमिता शुक्ला की हत्या ने मचाई थी सनसनी
2003 में उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी की कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया था। गर्भवती मधुमिता की लखनऊ के पेपर मिल इलाके में उनके आवास पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस निर्मम हत्या में पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी की संलिप्तता के आरोप लगे थे और उन्हें उसी वर्ष सितंबर में गिरफ्तार किया गया था। कोर्ट ने अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि, रोहित चतुर्वेदी और अन्य अभियुक्तों को इस हत्याकांड में दोषी ठहराया था।
हत्या का घटनास्थल
9 मई 2003 को लखनऊ के निशातगंज स्थित पेपर मिल कॉलोनी में कवयित्री मधुमिता शुक्ला की गोली मारकर हत्या की गई थी। CBI की चार्जशीट के अनुसार, उस वक्त मधुमिता अपने घर में अकेली थीं, जबकि उनका नौकर देशराज वहां उपस्थित था। घटना के दौरान शूटर संतोष राय और प्रकाश पांडे उनके घर पहुंचे थे।
मधुमिता दोनों के साथ कमरे में बातचीत कर रही थीं, जब देशराज चाय बना रहा था। इसी दौरान गोली चलने की आवाज आई, और देशराज कमरे में पहुंचा तो उसने मधुमिता को लहूलुहान हालत में पाया। बाद की जांच में CBI ने देशराज के बयान को महत्वपूर्ण मानते हुए अमरमणि त्रिपाठी की संलिप्तता का पर्दाफाश किया था।
कोर्ट ने दी थी उम्रकैद की सजा
CBI की जांच में अमरमणि पर गवाहों को धमकाने के आरोप लगे थे, जिसके बाद मुकदमा देहरादून की फास्ट ट्रैक कोर्ट में स्थानांतरित किया गया था। देहरादून की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 24 अक्टूबर 2007 को अमरमणि, मधुमणि, रोहित चतुर्वेदी, प्रकाश पांडे और संतोष राय को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
जुलाई 2012 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी दोषियों को CBI कोर्ट द्वारा दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा था। हालांकि, अमरमणि और मधुमणि को लगभग 20 साल की सजा काटने के बाद 25 अगस्त को शासन के निर्देश पर समयपूर्व रिहाई मिल गई थी।
उत्तराखंड सरकार पर रिहाई के फैसले का दबाव
रोहित चतुर्वेदी की रिहाई के लिए दायर याचिका ने उत्तराखंड सरकार पर एक नया दबाव बना दिया है, खासकर तब जब मुख्य आरोपी अमरमणि और मधुमणि को पहले ही रिहा किया जा चुका है। अदालत द्वारा जारी नोटिस के बाद उत्तराखंड सरकार पर मामले को संवेदनशील तरीके से निपटाने का दबाव है, क्योंकि इस निर्णय का बड़ा सामाजिक और राजनीतिक असर हो सकता है।
अमरमणि-मधुमणि की रिहाई के विरोध में उठी थीं आवाजें
अमरमणि और मधुमणि की रिहाई के बाद कई सामाजिक संगठनों और नागरिक समूहों ने इसका विरोध किया था। उनका कहना था कि इतने जघन्य अपराध में दोषी ठहराए गए लोगों को माफी देना न्याय की अवमानना है। ऐसे में अब रोहित चतुर्वेदी की रिहाई के लिए दायर याचिका भी विवादों के घेरे में है।
मधुमिता के परिवार का पक्ष
मधुमिता शुक्ला के परिवार ने पहले भी दोषियों की माफी और रिहाई का विरोध किया था। उनका कहना है कि अगर रोहित को भी रिहा किया गया, तो यह मधुमिता की आत्मा के साथ अन्याय होगा। परिवार का मानना है कि हत्याकांड के सभी दोषियों को उनकी सजा पूरी करने देनी चाहिए।
राजनीतिक माहौल और फैसले का प्रभाव
अमरमणि त्रिपाठी, एक समय के चर्चित नेता, का इस हत्याकांड से राजनीतिक करियर समाप्त हो गया था। लेकिन उनकी रिहाई ने उत्तर प्रदेश के राजनीतिक माहौल में हलचल मचा दी है। अब यदि रोहित चतुर्वेदी को भी रिहाई मिलती है, तो इस फैसले का असर राजनीति पर भी पड़ सकता है।
CBI की भूमिका और केस की जटिलता
इस हत्याकांड की जांच की कमान CBI को सौंपी गई थी, जिसने बारीकी से मामले की जांच की और दोषियों को सजा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। CBI ने मधुमिता के नौकर देशराज के बयान को अहम मानते हुए एक ठोस केस बनाया। रोहित चतुर्वेदी की रिहाई के लिए दी गई याचिका से एक बार फिर CBI की जांच की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो सकते हैं।
समाजसेवी संगठनों की नजर
कई समाजसेवी संगठन इस मामले पर कड़ी नजर बनाए हुए हैं। उनका मानना है कि दोषियों को सजा में छूट देना महिलाओं के खिलाफ अपराधों के प्रति एक गलत संदेश दे सकता है। उनका तर्क है कि न्यायपालिका को ऐसे मामलों में कठोर रुख अपनाना चाहिए ताकि महिलाओं की सुरक्षा के प्रति समाज में एक स्पष्ट संदेश जाए।