राजेश कुमार यादवकी कलम से
Head editeor Sctv news
तरकुल का कोवा गर्मी के दिन में ग्रामीण इलाकों में खूब मिलता है जिन इलाकों में तार का पेड़ है वहां के लोग इसका खूब आनंद उठाते है। पटना से उत्तर बिहार आने के लिए जैसे ही आप जेपी सेतु पर करते हैं सोनपुर की तरफ पहला गांव है गंगाजल। जेपी सेतु के मुहाने से नए ओवर ब्रिज के बीच आपको दर्जनों लोग कोवा़ बेचते नजर आएंगे तार के पत्ते पर इसे₹5 पीस के हिसाब से बेचा जा रहा है पहले यह बिकता नहीं था। पर आप हर चीज की कीमत है तो यह भी बिक रहा है खरीददार भी बेहद खास लोग ही हैं। जिन्होंने सोशल मीडिया पर इस चीज के बारे में पढ़ा है देखा है वह इसे जरूर चखना चाहते हैं। कुछ इलाकों में से तरकुल भी कहा जाता है हालांकि तार के पेड़ को ही भोजपुरी में तरकुल कहते हैं। तरकुल में दो प्रजाति होती है एक में लंबी-लंबी बालिया होती है जबकि दूसरे में तार का फल लगता है और इसी तार के फल से कोवा निकलता है। ग्रामीण इलाकों में बच्चों के लिए यह बेहद कौतूहल का विषय होता है जून के महीने में यह खाने योग्य हो जाता है उसे समय यह मुलायम होता है बाद में यह कड़ा हो जाता है पक जाता है और पेड़ से खुद से गिरने लगता है जब यह जमीन के अंदर जाता है तो 6 महीने के बाद इसके अंदर से पेड़ बनना शुरू होता है लंबी प्रक्रिया होती उसे दौरान भी जब इसको जमीन से बाहर निकाला जाता है तो इसके अंदर से हुआ जैसा मीठा फल निकलता है।