रिपोर्ट राजेश कुमार यादव
नई दिल्ली
दुनिया के अनेकानेक देश भारत के चुनावों का गहराई से अध्ययन करते हैं। विविधताओं से भरे इतने विशाल देश का चुनाव भी दुनियां के लिए चमत्कृत करने जैसा रहता आया है। उस देश का विपक्ष ये शोर मचाये कि यहां तो चुनाव आयोग निष्पक्ष नही और न चुनावी मशीन। देश के लोकतंत्र को खतरे में बताने का शोर मचाया जाए और संविधान बदलने की बात की जाए। आम चुनावों में देश के विपक्ष ने दुनिया के सामने भारत की केसी तस्वीर पेश की? अब सब तरफ सन्नाटा पसरा हुआ हैं। ईवीएम पर कोई सवाल अब क्यो नही? चुनाव आयोग पर अब संदेह क्यो नहीं? क्या ये प्रतिपक्ष धर्म होता है कि अपने देश की गौरवशाली लोकतांत्रिक धरोहर को सिर्फ इसलिए दुनिया के सामने बदनाम कर दो कि नतीज़े हमारे पक्ष के नही आ रहें? अब आ गए आपके पक्ष के नतीज़े। अब क्या? अब मौन क्यो? मांगिये न माफ़ी देश से। ईवीएम से, आयोग से। दुनियां से।
क्या विपक्ष ऐसा होता हैं जो सत्ता के लिए देश की प्रतिष्ठा दांव पर लगा दे?
दुनिया जिस देश को लोकतांत्रिक मूल्यों के लिये जानती, मानती औऱ पहचानती हैं, प्रतिपक्ष के नेता उस भारत के समूचे लोकतांत्रिक ढांचे को ही बदनाम कर दे पूरी चुनावी प्रक्रिया पर ही सवालिया निशान लगा दे? पूरी दुनियां तक ये सन्देश चीख चीख़कर भेजें की भारत मे लोकतंत्र ख़तरे में हैं। चुनाव आयोग और चुनावी मशीन की निष्पक्षता पर बार बार सन्देश प्रकट करे वह भी तब, जब सुप्रीम कोर्ट तक इस मुद्दे पर दो टूक फैसला दे दे कि सब कुछ निष्पक्ष-पारदर्शी व सही हैं।
बावजूद इसके ईवीएम और आयोग को निशाने पर रखने का सिलसिला न थमे। बड़े व जिम्मेदार नेता तक एक ही राग अलापे कि चुनाव निष्पक्ष नहीं और न चुनाव आयोग अब कहा है सब? अब तो लोकतंत्र ख़तरे में नही न कि अब भी भारत मे लोकतंत्र पर संकट हैं?
संविधान भी सुरक्षित है कि बदल गया विपक्ष को अब इन सब मुद्दों पर जवाब देना चाहिए न आख़िर पूरी दुनियां में देश की जो बदनामी हुईं, उसका कौन जिम्मेदार? क्या विपक्ष को इस मामले में देश से, आयोग से और सुप्रीम कोर्ट से माफ़ी नही मांगना चाहिए।
ये सब सवाल इसलिए कि नेताओ का क्या गया?
बदनामी तो उस भारत की हुई जिसके डीएनए में लोकतंत्र हैं। ये बात क्या विपक्ष नही जानता अब जब नतीजों ने दूध का दूध और पानी कर दिया तो फिर गहरी चुप्पी क्यो? क्यो इतना सन्नाटा पसरा हुआ हैं। ईवीएम तो वो ही हैं न जिस पर रत्तीभर भरोसा न था। अब क्या वह पाकीज़ा हो गई आपके पक्ष में नतीजे उगलते ही ईवीएम ईमानदार हो गई। अगर नतीज़े मनोनुकूल नही आते तो इसी ईवीएम पर कितना हल्ला मचता तो क्या विपक्ष, इस देश के लोकतांत्रिक ढांचे में ऐसे ही भूमिका निभाएगा।
मीठा मीठा गप्प गप्प, कड़वा कड़वा थू थू" की तर्ज पर ही रहेगा उसका लोकतंत्र में विश्वास विपक्ष के नेताओ को देश की जनता को जवाब तो देना ही चाहिए न कि हम आयोग व ईवीएम को लेकर गलत थे। अगर लोकतंत्र में भरोसा है और देश की चुनावी प्रक्रिया में आस्था है तो कीजिये न बड़ा दिल, मांगिये न देश से माफ़ी ईवीएम के भी हाथ जोड़िए, जिसके पुर्जे पुर्जे निकलवाकर जांच लिए गए। बावजूद इसके भरोसा नही और निरंतर बदनामी। विपक्ष का ये व्यवहार क्या माफ़ करने लायक हैं?
भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था तो "मौर्य युगीन" है न ये बात क्या राजनीति करने वाले नही जानते अगर नही जानते तो फिर देश का प्रतिनिधित्व करने का उन्हें कोई हक नही। भारत एक गणराज्य के रूप में तब भी लोकतांत्रिक था, जब दुनिया के अन्य देश ये समझते भी नही थे कि लोक का तंत्र क्या होता हैं। इस देश मे आजादी के बाद से आज तक अनेक चुनाव हुए। इससे भी कठिन परिस्थितियों में पार्टियों ने चुनाव लड़े लेकिन कभी भी चुनाव में धांधली के आरोप न मढे और न अपनी चुनावी संस्थाओं पर सवाल खड़े किए। इस बार क्यो फिर प्रतिपक्ष दुनिया को ये दिखाने पर आमादा था कि भारत का चुनाव भी पाकिस्तान के चुनाव जैसा हो चला है?
जिस देश मे रहकर अभी दशकों तक राजनीति करना है, उस देश में को दुनियां के सामने बदनाम करने में कोई झिझक नही आई अब सब ख़ामोश है। क्यो?
क्योकि नतीज़े आपके पक्ष में आये। तो क्या देश का प्रतिपक्ष ऐसा विपक्षी धर्म निभाएगा कि नतीज़े अपने पक्ष में आये तो सब कुछ भला भला। अन्यथा सब कुछ बुरा बुरा? जो सत्ता में है, क्या वे इस तरह से व्यवहार करते थे वे तो 2 सीट तक सिमट गए थे। फिर भी डटे रहें। ईवीएम के भरोसे नही। स्वयम के पुरुषार्थ के दम पर। नए भारत के नए प्रतिपक्ष के पास क्या पुरुषार्थ की कमी हैं। फिर बार बार संस्थाओं को दोष क्यो? अपना गिरेबाँ में भी तो झांके कि हमेशा ईवीएम के अंदर ही झाकेंगे?