भारत के हजारों एमएसएमई ने भुगतान की समय सीमा के नए प्रावधान से प्रभावित होने के कारण पंजीकरण रद्द कर ना शुरू कर दिया* नई सरकार के गठन तक इंतजार करें एमएसएमई : शंकर ठक्कर* सर्वोच्च न्यायालय से भी नहीं मिली राहत

A G SHAH . Editor in Chief
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मुम्बई/नई दिल्ली 

ललित दवे

कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) महाराष्ट्र प्रदेश के महामंत्री एवं अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने बताया सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को देय भुगतान के लिए 45 दिन की समय सीमा अनिवार्य करने वाला एक नया नियम 1 अप्रैल से प्रभावी हुआ है। देशभर में कई व्यापारी ऑर्डर खत्म होने के लिए नए नियम को जिम्मेदार ठहराते हुए अदालत का रुख कर ने का मन बना रहे हैं।छोटे व्यवसायों पर बकाया भुगतान की समय सीमा तय करने के सरकार के फैसले ने हजारों छोटे व्यवसायों को परेशान कर दिया है।

सूत्रों से मिली जानकारी  मुताबिक 40,000 से अधिक भारतीय छोटे व्यवसायों ने अपना पंजीकरण रद्द कर दिया है जिसमें सबसे ज्यादा करीब 12000 गुजरात के एमएसएमई हैं और 45 दिनों के भीतर भुगतान करने के अनिवार्य नियम को हटाने की अपील के साथ एक संगठन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने भी किसी प्रकार की राहत न देते हुए उच्च न्यायालय जाने को कहा है।

आयकर अधिनियम 1961 की धारा 43एच (बी) के तहत, भारत में 36 मिलियन सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) में से किसी से भी सामान खरीदने वाले किसी भी व्यक्ति को 45 दिनों के भीतर देय धन का भुगतान करना नए प्रावधान के मुताबिक अनिवार्य है। यदि यह राशि 45 दिन के भीतर खरीदार ने भुगतान नहीं की तो अवैतनिक बकाया राशि खरीदार के लाभ में जोड़ दी जाती है।

हजारों छोटे व्यवसायों का दावा है कि 1 अप्रैल को नियम लागू होने के बाद से बड़े ग्राहकों के नए ऑर्डर कम हो गए हैं।

कैट महाराष्ट्र प्रदेश के वरिष्ठ अध्यक्ष महेश बखाई के अनुसार, कई एमएसएमई के व्यवसाय पंजीकृत संस्थाओं से अपंजीकृत संस्थाओं की ओर प्रवाहित होना शुरू हो गया है क्योंकि इससे खरीदार को भुगतान की समय सीमा से बचने की अनुमति मिलती है। इस अनपेक्षित परिणाम के कारण छोटे व्यवसायों में काफी रोष है।

शंकर ठक्कर ने आगे कहा एमएसएमई को नई सरकार के गठन तक राह देखनी चाहिए क्योंकि फिलहाल सभी वरिष्ठ नेता चुनाव में व्यस्त है। हो सकता है चुनाव के बाद इस पर पुनर्विचार कर राहत मिल जाए।

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