इंजीनियर यादव सिंह से जुड़ा मामला : नोएडा प्राधिकरण में हुए टेंडर घोटाले पर सुनवाई टली, अब...

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रिपोर्ट राजेश कुमार यादव

नोएडा  : गौतमबुद्ध नगर के विकास प्राधिकरणों पर नजर रखने वाले लोगों के लिए ख़ास खबर है। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी के चीफ इंजीनियर रहे यादव सिंह पर टेंडर घोटाले मामले में मंगलवार को सीबीआई अदालत में सुनवाई टल गई। अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 22 मार्च की तारीख लगाई है।

अदालत में आरोप पत्र दाखिल

सीबीआई के लोक अभियोजक ने बताया कि वर्ष 2011 में नोएडा टेंडर घोटाला हुआ था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने घोटाले की जांच की थी। इसमें पता चला था कि प्राधिकरण के तत्कालीन मुख्य अभियंता यादव सिंह ने अपनी चहेती फर्माें से पहले काम करवा लिया था, उसके बाद निविदा आमंत्रित की थी। जांच में पता चला कि इसमें करोड़ों रुपये का घोटाला होना पाया गया। इस मामले में सीबीआई ने यादव सिंह समेत 11 लोग और तीन फर्मों को आरोपी बनाते हुए अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दी थी। तभी से मामले की सुनवाई विशेष सीबीआई कोर्ट में विचाराधीन है

पहली बार 2015 में शुरू हुई थी जांच

यादव सिंह से जुड़े मामले सीबीआई को सौंपे गए। आरोप है कि यादव सिंह ने 2004 से 2015 के दौरान अवैध तरीके से धन इकट्ठा किया है। यादव सिंह ने इस दौरान गौतमबुद्ध नगर के तीनों विकास प्राधिकरणों में बतौर चीफ इंजीनियर रहते अवैध तरीके से धन एकत्र किया। भ्रष्टाचार के माध्यम से यादव सिंह ने अपने पद का दुरुपयोग किया। यादव सिंह के खिलाफ पहली बार 2015 में जांच शुरू हुई थी। यह जांच तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार ने शुरू करवाई थी। हालांकि, बाद में यह मामला गौतमबुद्ध नगर पुलिस से हटाकर उत्तर प्रदेश सीबीसीआईडी को दे दिया गया था। कुछ दिन सीबीसीआईडी ने जांच की और बाद में इस मामले को क्लोज कर दिया गया था।

यादव सिंह पर तमाम गंभीर आरोप

सीबीआई के आरोप पत्र में कहा गया था कि यादव सिंह ने अप्रैल 2004 से अगस्त 2015 के बीच आय से अधिक 23.15 करोड़ रुपए जमा किए हैं, जो उनकी आय के स्रोत से लगभग 512.6 प्रतिशत अधिक हैं। सीबीआई ने पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह पर कुल 954 करोड़ की धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। यह धोखाधड़ी नोएडा विकास प्राधिकरण में बतौर चीफ इंजीनियर रहते हुए एक अंडर ग्राउंड बिजली केबलिंग का टेंडर छोड़ने में की गई है। जांच में बात सामने आई है कि बिजली का केबल टेंडर होने से पहले ही सड़क के नीचे दबा दिया गया था। टेंडर बाद में किया गया और भुगतान भी बाद में किया गया था।

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