सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार दिया

A G SHAH
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रिपोर्ट राजेश कुमार यादव

नई दिल्ली

 सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (15 फरवरी) को चुनावी बांड मामले में अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया। उक्त फैसले में कहा गया कि गुमनाम इलेक्टोरल बॉन्ड संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। तदनुसार, इस योजना को असंवैधानिक करार दिया गया। 

 चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की एक संविधान पीठ ने नवंबर में फैसला सुरक्षित रखने से पहले, तीन दिनों की अवधि में विवादास्पद इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को चुनौती देने वाले मामलों की सुनवाई की।

अदालत सर्वसम्मत से निर्णय पर पहुंची। इसमें सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने मुख्य फैसला सुनाया, जस्टिस खन्ना ने थोड़े अलग तर्क के साथ सहमति व्यक्त की। दोनों निर्णयों ने दो प्रमुख सवालों के जवाब दिए। 

 पहला, क्या इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के अनुसार राजनीतिक दलों को स्वैच्छिक योगदान पर जानकारी का गैर-प्रकटीकरण और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29 सी, धारा 183 (3) में संशोधन, कंपनी अधिनियम, आयकर अधिनियम की धारा 13ए(बी) संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है, दूसरा, क्या धारा में संशोधन द्वारा राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट फंडिंग की परिकल्पना की गई है, यह कंपनी अधिनियम की धारा 182(1) स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है।

सीजेआई चंद्रचूड़ ने खुले शासन के महत्व पर जोर देते हुए शुरुआत में ही कहा,

"मतदान के विकल्प के प्रभावी अभ्यास के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है।"

जस्टिस गवई, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मिश्रा की ओर से राय लिखते हुए सीजेआई ने महत्वपूर्ण रूप से माना कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम ने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन किया है।

उन्होंने कहा,

"प्राथमिक स्तर पर, राजनीतिक योगदान योगदानकर्ताओं को मेज पर सीट देता है, यानी, यह विधायकों तक पहुंच बढ़ाता है। यह पहुंच नीति निर्माण पर प्रभाव में भी तब्दील हो जाती है। वैध संभावना यह भी है कि किसी राजनीतिक दल को पैसे और राजनीति के बीच घनिष्ठ संबंध के कारण बदले की व्यवस्था में वित्तीय योगदान के लिए नेतृत्व मिलेगा। इलेक्टरोल बांड स्कीम और विवादित प्रावधान इस हद तक कि वे इलेक्टरोल बांड के माध्यम से योगदान को अज्ञात करके मतदाता की जानकारी के अधिकार का उल्लंघन करते हैं, जो अनुच्छेद 19(1))(ए) का उल्लंघन है।" 

केस टाइटल- एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य। | 2017 की रिट याचिका (सिविल) संख्या 880



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