रिपोर्ट राजेश कुमार यादव
गुरुग्राम
सीके बिरला अस्पताल गुरुग्राम में 26 वर्षीय युवक की जटिल सर्जरी को सफलतापूर्वक किया गया. इस मरीज को लिंब लेंथ डिस्क्रिपेंसी थी, यानी ऐसी समस्या जिसमें इंसान के हाथों या पैरों की लंबाई में अंतर होता है. सऊदी अरब के रहने वाले अब्दुल्ला को कूल्हे में समस्या थी, जिसकी वजह से उनका शरीर दाहिनी तरफ झुका हुआ था. सीके बिरला अस्पताल गुरुग्राम में इस जटिल सर्जरी को बेहतर रिजल्ट के साथ पूरा किया गया.
अब्दुल्ला के कूल्हे में परेशानी थी, जिसकी वजह वो इस हालत में थे. दर्द से राहत पाने और चलने की क्षमता में सुधार के लिए 2 साल पहले किसी अन्य अस्पताल में अब्दुल्ला की टोटल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी की गई. सर्जरी के बाद भी अब्दुल्ला को पूरी तरह राहत नहीं मिली. अब्दुल्ला ने आखिरकार सीके बिरला अस्पताल गुरुग्राम के डॉक्टरों से परामर्श लिया.
अलग-अलग टेस्ट रिपोर्ट और जांच पड़ताल के बाद ये सामने आया कि लिंब लेंथ में अंतर की वजह से अब्दुल्ला को ये दर्द था जो पहली सर्जरी के दौरान पूरी तरह ठीक नहीं हो पाया था. सीके बिरला अस्पताल गुरुग्राम में जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉक्टर देबाशीष चंदा ने कहा, लोअर लिंब डिस्क्रिपेंसी ऐसी स्थिति होती है जिसमें एक पैर की लंबाई दूसरे से ज्यादा होती है और इससे शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है. ज्यादातर मामलों में ये अंतर करीब 1 सेंटीमीटर का होता है और इसे सामान्य माना जाता है. लेकिन अब्दुल्ला के हालात अलग थे, इनका अंतर 1.5 सेंटीमीटर था जिसके चलते उन्हें परेशानी हो रही थी.''
डॉक्टरों ने बताया कि इस समस्या की वजह से आगे चलकर काफी ज्यादा परेशानी होने का रिस्क रहता है. इससे चलने में परेशानी, चाल के पैटर्न में बदलाव, जोड़ों का दर्द और यहां तक कि रीढ़ में भी दिक्कत हो जाती है. ऐसे में इस स्थिति का सही इलाज कराना बेहद जरूरी है ताकि मरीज नॉर्मल हो सके और उसकी क्वालिटी लाइफ में सुधार हो सके.
डॉक्टर देबाशीष चंदा ने कहा, ''करेक्टिव सर्जरी का मकसद अब्दुल्ला के पैरों की लंबाई एक समान करना था ताकि उनका बैलेंस ठीक हो सके और दर्द व मूवमेंट की परेशानी से बच सकें. अब्दुल्ला की ये करेक्टिव सर्जरी बहुत ही सावधानीपूर्वक की गई ताकि उनकी बॉडी की सिमिट्री और अलाइनमेंट परफेक्ट हो सके.''
सर्जरी के बाद सीके बिरला अस्पताल की मेडिकल टीम ने बहुत ही ध्यानपूर्वक अब्दुल्ला की हालत में सुधार को मॉनिटर किया. पिछले हफ्ते जब अब्दुल्ला के टांके खोले गए तो उन्हें मोबिलिटी में काफी सुधार महसूस हुआ. वो बिना बैखासी के चलने में सक्षम थे, ये उनकी रिकवरी में मील का पत्थर था. पैर की लंबाई में अंतर के ठीक होने से उन्हें नई उम्मीद मिली है और क्वालिटी ऑफ लाइफ में सुधार हुआ है.