_28 फरवरी 2024 : द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी कब है? बन रहे 2 शुभ संयोग, व्रत का मिलेगा दोगुना फल, देखें मुहूर्त, चंद्र अर्घ्य समय और पूजा विधि

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राजेश कुमार यादव की क़लम से

 28 फरवरी को 01:53 एएम से फाल्गुन मा​ह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि लग रही है.

 जिन लोगों को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी की पूजा करनी है, वे सुबह मे सर्वार्थ सिद्धि योग में कर सकते हैं.

_संकष्टी चतुर्थी वाले दिनबज्रोदय रात में 09 बजकर बजनट पर होगा

तिथि कब से कब तक चतुर्थी तिथि प्रारम्भ: 28 फरवरी, बुधवार देर रात 01 बजकर 53 मिनट से चतुर्थी तिथि समाप्त: 29 फरवरी, गुरुवार सुबह 04 बजकर 18 मिनट तक कब रखा जाएगा व्रत: उदयातिथि 28 फरवरी होने के कारण व्रत बुधवार ​को रखा जाएगा। पूजा का मुहूर्त सर्वार्थ सिद्धि योग: बुधवार सुबह 06 बजकर 48 मिनट से 07 बजकर 33 मिनट तक अमृत सर्वोत्तम मुहूर्त: बुधवार सुबह 06 बजकर 41 मिनट से सुबह 09 बजकर 41 मिनट तक संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि

 संकष्टी चतुर्थी के दिन स्नानादि कर घर में गंगाजल छिड़कें. घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें.

 संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें.

 गणपित भगवान का गंगा जल से अभिषेक करें.

 भगवान गणेश को पुष्प अर्पित करें.

 भगवान गणेश को दूर्वा घास भी अर्पित करें.

 भगवान गणेश को सिंदूर लगाएं.

भगवान गणेश का ध्यान करें.

 गणेश जी को भोग भी लगाएं.

_संकष्टी चतुर्थी पूजा सामग्री लिस्ट

संकष्टी चतुर्थी की पूजाइलालिए लकड़ी की चौकी, पीला कपड़ा, जनेऊ, सुपारी, पान का पत्ता, लौंग, इलायगंगाजल, गणपति की मूर्ति, लाल फूल, 21 गांठ दूर्वा, रोली, मेहंदी, सिंदूर, अक्षत, हल्दी, मौली, इत्र, अबीर, गुलाल, गाय का धी, दीप, धूप, 11 या 21 तिल के लड्डू, मोदक, मौसमी फल, सकट चौथ व्रत कथा की पुस्तक, चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए दूध, गंगाजल, कलश, चीनी आदि चीजों की आवश्यकता होगी.

⛈️ फाल्गुन मास की संकष्टी चौथ का व्रत 28 फरवरी को रखा जाएगा। फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन संकष्टी चतुर्थी पड़ रही है। मार्च महीने की संकष्टी चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाएगा। इस दिन भगवान श्री गणेश और चंद्रमा की पूजा अर्चना की जाती है। माताएं इस व्रत को संतान की प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। इसलिए आइए जानते हैं आचार्य श्री गोपी राम से संकष्टी चतुर्थी पूजा की विधि, शुभ मुहूर्त, चंद्रोदय समय और व्रत पारण की सही विधि-

चाँद निकलने का टाइम

28 फरवरी को रात 9 बजकर 25 मिनट पर चंद्रोदय होगा। हालांकि, अलग-अलग शहरों में चांद निकलने के समय में थोड़ा अंतर हो सकता है।

 व्रत का पारण कैसे करें?

संकष्टी चतुर्थी के व्रत का पारण करने के अगले दिन भी केवल सात्विक भोजन या फलाहार ही ग्रहण करें और तामसिक भोजन से परहेज करें। संकष्टी चतुर्थी में व्रत खोलने के लिए चंद्रमा दर्शन और पूजन को जरूरी माना गया है। इस व्रत को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पूर्ण माना जाता है। चंद्रोदय के बाद अपनी सुविधा के अनुसार अर्घ्य देकर व्रत का पारण करें और अपनी मनोकामना के लिए पूजा अर्चना करें।

महत्व:

फाल्गुन माह की संकष्टी चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है। यह व्रत भगवान गणेश और चंद्रमा को समर्पित है। इस व्रत को रखने से सुख-समृद्धि, संतान प्राप्ति, विघ्नों का नाश, मनोकामनाओं की पूर्ति और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।

संकष्टी चतुर्थी के दिन अपनाएं ये उपाय

शास्त्र के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा करते समय उन्हें गेंदे के फूल, मोदक और गुड़ अवश्य चढ़ाने चाहिए. साथ ही दूव अर्पित करने से भी गणेश जी प्रसन्न होते हैं.

शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश को सिंदूर अतिप्रिय है और इस दिन उनकी पूजा करते समय सिंदूर का तिलक लगाना चाहिए. इसके बाद वही तिलक अपने माथे पर भी लगाना चाहिए. यह भगवान गणेश का आशीर्वाद होता है और इससे सुख-सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है.

यदि आप धन संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं तो संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा के दौरान गणेश स्रोत का पाठ अवश्य करें. साथ ही 'ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः' मंत्र का भी 11 बार जाप करना चाहिए.

दुख, दरिद्रता और समस्याओं से छुटकारा पाना चाहते हैं तो संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा के बाद शमी के पेड़ का भी पूजन जरूर करें. इससे गणपति जी प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों से जीवन से सभी दुखों को दूर करते हैं.

अगर आप मन की शांति और संतान प्राप्ति की चाहत रखते हैं तो भी संकष्टी चतुर्थी का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है. इस दिन गणेश जी की पूजा करते समय सफेद या पीले रंग के वस्त्र पहनें और पूजा में लाल चंदन का उपयोग करें. इससे सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी.

 द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा

        पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नदी के किनारे बैठे हुए थे. कुछ देर बाद माता पार्वती के मन में चौपड़ खेलने विचार आया. उन्होंने शिव जी से चौपड़ का खेल खेलने के लिए कहा, तो वे भी तैयार हो गए. लेकिन अब समस्या यह थी कि वहां कोई तीसरा व्यक्ति नहीं था, जो हार जीत का निर्णय कर सके. इस समस्या का समाधान करने के लिए माता पार्वती ने अपनी शक्ति से एक बालक की मूर्ति बनाई और उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर दी. फिर उस बालक से कहा कि तुम इस चौपड़ खेल के निर्णायक हो. तुम्हे हमारी हार और जीत का फैसला करना है. इसके बाद माता पार्वती और शिव जी के बीच चौपड़ का खेल शुरू हुआ.

        चौपड़ के खेल में हर बारी माता पार्वती जीत रही थीं और उन्हें कई बार भगवान शिव को इस खेल में हराया. इसके बाद माता पार्वती ने उस बालक से खेल का निर्णय बताने के लिए कहा तो उसने भगवान शिव को विजयी बता दिया. इस गलत और झूठे फैसले से माता पार्वती नाराज हो गईं और उन्होंने गुस्से में बालक को श्राप दे दिया. माता पार्वती के श्रापवश वह बालक लंगड़ा हो गया. बालक ने क्षमा याचना की, तो माता पार्वती ने कहा कि यह श्राप वापस नहीं हो सकता. लेकिन इससे मुक्ति पाने का एक उपाय है. उन्होंने बालक को संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने को कहा. साथ ही यह भी कहा कि इस व्रत की विधि इस नदी किनारे आने वाली कन्याओं से पूछना और फिर विधिपर्वूक संकष्टी चतुर्थी का व्रत करना.

         बालक ने माता पार्वती के कहे अनुसार ऐसा ही किया और संक​ष्टी चतुर्थी पर कन्याओं से व्रत की विधि जान ली. इसके बाद नियमपूर्वक व्रत किया. बालक के व्रत व पूजा से प्रसन्न होकर गणेश जी ने प्रकट हुए और उससे वरदान मांगने को कहा. तब बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की इच्छा व्यक्त की, तो गणेश जी उसे कैलाश पहुंचा देते हैं. कहते हैं कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से भगवान गणेश जीवन से सभी बाधाओं और कष्टों को दूर करते हैं.

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