सशस्त्र सेना झंडा दिवस पर विशेष

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रिपोर्ट राजेश कुमार यादव

 हमारी भारतीय सेना विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना है जिसमें लगभग 4  लाख सशस्त्र सैनिक तथा लगभग 12 लाख आरक्षित सैनिक हैं। हमारी सेना ने आजादी से पहले प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्ध में भी भाग लिया था। प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सेना के 62,000 सैनिक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे और 67,000 घायल हुए थे तथा द्वितीय विश्व युद्ध में 36,000 भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त  हुए थे और लगभग 34,354 सैनिक घायल हुए थे । प्रथम विश्व युद्ध में अदम्य साहस के प्रदर्शन के लिए 11 भारतीय सैनिकों को उस समय का सर्वोच्च वीरता सम्मान "विक्टोरिया क्रास" प्रदान किया गया था।

 स्वतंत्रता मिलने के पश्चात ही पड़ोसी देश पाकिस्तान ने हमारे देश पर आक्रमण कर दिया था। इस युद्ध में 547 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे तथा 1300 से ज्यादा सैनिक घायल हुए थे। वीरगति प्राप्त और घायल सैनिकों के परिवार काफी पीड़ा में थे। उन्ही पीड़ित परिवारों के दर्द को देखते हुए तथा वीरगति प्राप्त सैनिकों की कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए सन् 1949 में हमारी सरकार द्वारा प्रतिवर्ष 7 दिसंबर को झंडा दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। तब से प्रति वर्ष 7 दिसंबर को भारतीय सशस्त्र बलों के कर्मियों के कल्याण के लिए देश की जनता से दान के रुप में धन-संग्रह करने के लिए तथा उन सैनिकों और उनके परिजनों का आभार व्यक्त करने के लिए यह दिन मनाया जाता है।

 देश द्वारा अब तक लड़े गए विभिन्न युद्धों तथा  सीमा पार से चलाये जा रहे आतंकवाद का मुकाबला करने के दौरान हमारी सेना के जवान अपने बहुमूल्य जीवन का बलिदान दे देते हैं या बहुत से सैनिक  गोली लगने या माइन्स फटने या कुछ अन्य कारणों से विकलांग भी हो जाते हैं। परिवार के मुखिया की आकस्मिक मृत्यु या विकलांग होने से परिवार को जो आघात पहुंचता है, उसकी कल्पना करना कठिन है। इस स्थिति में वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिवार और  विकलांग सैनिकों की देखभाल और पुनर्वास की आवश्यकता होती है ताकि वे खुद को अपने परिवार पर बोझ न समझें और सम्मान का जीवन जी सकें। इसके अलावा, ऐसे सेवानिवृत्त सैनिक  जो कैंसर, हृदय रोग आदि जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं, उन्हें भी हमारी देखभाल और सहायता की आवश्यकता है क्योंकि वे उपचार की मंहगी लागत को वहन करने में असमर्थ होते हैं।

सशस्त्र सेना झंडा दिवस पर हुए धन संग्रह से युद्ध के समय हुई जनहानि में सहयोग, सेना में कार्यरत कर्मियों और उनके परिवार के कल्याण और सेवानिवृत्त कर्मियों और उनके परिवार के कल्याण के लिए खर्च किया जाता है। इस दिवस पर धन संग्रह करने के लिए सशस्त्र सेना के प्रतीक चिन्ह झंडे को बाँटा जाता है। इस झंडे में तीन रंग लाल, गहरा नीला और हल्का नीला हैं। यह हमारी तीनों सेनाओं को प्रदर्शित करते है। सन् 1949 से 1992 तक इसे झंडा दिवस के रूप में मनाया जाता था लेकिन 1993 से इसे सशस्त्र सेना झंडा दिवस के नाम पर मनाने का निर्णय लिया गया। 

हमारे देश की सीमाएं बहुत विस्तृत तथा विविधताओं से भरी हुई हैं। हमारे देश की सीमाओं पर सियाचीन जैसे ग्लेशियर हैं जहां पर शरीर को जमा देने वाली ठंड होती है और आक्सीजन की कमी के कारण दस कदम चलने पर सांसें फूलने लगती हैं।  राजस्थान के बाड़मेर और जैसलमेर में इतनी भयानक गर्मी होती है कि शरीर का पानी भी भाप बन कर उड़ जाता है। कच्छ के रण की खारी हवा की अपनी ही विशेषता है जो कि शरीर के खुले अंगों में दरार बना देती है। पूर्वोत्तर का दलदली इलाका जहां पैदल चलना मुश्किल होता है, वहां भी हमारी सेना के जवान दुश्मन सेना की आँखों में आँखें डाले खड़े हैं।  

 इन विषम परिस्थितियों की परिकल्पना मात्र से शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। लेकिन हमारे बीर जवान अपनी मातृभूमि की रक्षा में सतत संघर्षशील है। हमारी तीनों सेनाओं के सैनिक तथा उनके परिवार देश की धरोहर है। उनकी देखभाल की जिम्मेदारी हम सब की है। हम अपने घरों में बिना किसी डर, भय और चिंता के चैन से सोते हैं क्योंकि सीमा पर हमारे बेटे मुस्तैद खड़े हैं। हमारा कर्तव्य है कि सीमा पर खड़े हमारे वीर जवान के परिजनों का हर संभव सहयोग करें ताकि देश की दुरूह सीमा पर खड़े हमारे सैनिक अपने परिवार की ओर से निश्चिंत होकर देश की रक्षा कर सकें।

हमारी सेना का सैनिक सीमा पर देश की रक्षा करने के अतिरिक्त देश में उत्पन्न प्राकृतिक आपदाओं में भी अपने जान की बाजी लगाकर अपने नागरिकों की सुरक्षा करता है। जहाँ हमारी सरकार के सब साधन कम पड़ जाते हैं वहां हमारे सेना के बहादुर जवान देवदूत बने खड़े नज़र आते हैं, चाहे वह गुजरात में आया भूकंप हो या केदार घाटी में आयी त्रासदी हो या अभी हाल ही में सिल्क्यारा सुरंग हादसा हो। हमारे सैनिकों ने देश के अलावा अंगोला, कंबोडिया,साइप्रस,कांगो,अल साल्वाडोर, नामीबिया,लेबनान,लाइबेरिया,मोजांबिक, रवांडा,सोमालिया, श्रीलंका तथा वियतनाम आदि देशों में भी  शांति सेना के रूप में तिरंगे को नील गगन में अपने शौर्य और सांसों से फहराया है।

यदि हम किसी भी संकट के समय नजर दौड़ाएं तो हमारी सेना ब्रम्हास्त्र की तरह  "यत्र, तत्र, सर्वत्र" खड़ी नजर आयेगी। हमारी सेना अपने आदर्श वाक्य "सर्विस बिफोर सेल्फ" की भावना से देश की सुरक्षा के लिए सदैव तत्पर खड़ी है। यह हमारा कर्तव्य है कि हम भी अपनी सेना, सैनिकों और उनके परिजनों के साथ हर समय खड़े नजर आएं।


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