रिपोर्ट राजेश कुमार यादव संयुक्त अरब अमीरात
भारत ने भारतीय करेंसी रुपये में कारोबार शुरू कर दिया है और इसके साथ ही भारतीय व्यापार का नया अध्याय शुरू हो गया है। भारत ने पहली बार संयुक्त अरब अमीरात को कच्चे तेल खरीदने के लिए रुपये में भुगतान किया है।
भारतीय अकारियों ने कहा है, कि संयुक्त अरब अमीरात से खरीदे गए कच्चे तेल के लिए भारत का पहली बार रुपये में भुगतान, दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता को अपनी स्थानीय मुद्रा को वैश्विक स्तर पर ले जाने में मदद कर रहा है।
भारत के लिए यूएई के साथ रुपये में तेल खरीदना अपने आप में ऐतिहासिक और नये युग की शुरूआत इसलिए है, क्योंकि इस भुगतान के साथ ही भारत ने अन्य देशों के साथ भी रुपये में कारोबार की संभावनाओं को तलाशना शुरू कर दिया है। हालांकि, भारत ने इसके लिए कोई लक्ष्य या फिर टारगेट तय नहीं किया है, लेकिन अब भारत की कोशिश अपनी स्थानीय करेंसी में कारोबार करने की है, ताकि डॉलर पर निर्भरता कम की जाए।
हालांकि, भारत रूस के साथ भी रुपये में कारोबार कर रहा है, लेकिन रूस के साथ रुपये में कारोबार के पीछे रूस पर लगे अमेरिकी प्रतिबंध हैं, लेकिन यूएई के साथ अपनी मर्जी का सौदा है।
डॉलर पर निर्भरता कम होने से फायदे
भारत को अपनी जरूरत का 85 प्रतिशत से ज्यादा तेल दूसरे देशों से खरीदना पड़ता है और डॉलर मजबूत होने की वजह से कच्चे तेल की कीमत बढ़ जाती है, जिसका सीधा असर तेल की घरेलू कीमत पर पड़ता है। लिहाजा, डॉलर पर निर्भरता कम होने से सबसे बड़ा फायदा ये है, कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डॉलर की मजबूती का असर कच्चे तेल पर नहीं पड़ेगा।
भारत इस पर कच्चे तेल को लेकर तीन स्ट्रैटजी पर काम कर रहा है। पहला स्ट्रैटजी है, कच्चे तेल के लिए किसी एक देश पर निर्भरता कम करना, लिहाजा भारत ने सऊदी अरब, इराक, संयुक्त अरब अमीरात और रूस के साथ तेल खरीदने के अलावा अब वेनेजुएला से भी तेल खरीदने पर विचार कर रहा है।
दूसरी स्ट्रैटजी ये है, कि उपलब्ध स्रोतों में उस देश से ज्यादा तेल खरीद रहा है, जो भारत को सस्ते दर पर तेल बेच रहा है।
और तीसरी स्ट्रैटजी ये है, कि इंटरनेशनल दायित्वों को पूरा करते हुए जी-7 देशों की तरफ से रूस के खिलाफ लगाए गये प्राइस कैप का उल्लंघन नहीं करना।
भारत की इस रणनीति ने अरबों डॉलर बचाने में मदद की है, क्योंकि भारत लगातार रुपये में रूसी तेल कम कीमत पर खरीद रहा है और रूस के साथ रुपये में कारोबार शुरू होने के बाद ही भारत ने अन्य देशों के साथ भी रुपये में कारोबार शुरू करने पर फोकस किया था।
भारत ने जुलाई में संयुक्त अरब अमीरात के साथ रुपये के भुगतान के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और इसके तुरंत बाद इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) ने अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी (एडीएनओसी) से दस लाख बैरल कच्चे तेल की खरीद के लिए भारतीय रुपये में भुगतान किया।
रूसी तेल आयात का कुछ हिस्सा भी रुपये में तय किया गया है।
अधिकारियों ने कहा कि कच्चे तेल के आयात के लिए डिफ़ॉल्ट भुगतान मुद्रा कई दशकों से अमेरिकी डॉलर रही है और मुद्रा में पारंपरिक रूप से तरलता के साथ-साथ कम हेजिंग लागत भी है।
लेकिन, सीमा पार से भुगतान में रुपये की भूमिका को बढ़ावा देने के लिए, भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले साल से एक दर्जन से ज्यादा भारतीय बैंकों को 18 देशों के साथ रुपये में व्यापार निपटाने की अनुमति दी है।
तब से, भारत संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे बड़े तेल निर्यातकों को व्यापार निपटान के लिए भारतीय मुद्रा स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। अधिकारियों ने कहा, पहली सफलता इस साल अगस्त में मिली, जब आईओसी ने एडीएनओसी को रुपये में भुगतान किया।
उन्होंने कहा कि भविष्य में ऐसे और सौदे हो सकते हैं। अधिकारियों ने जोर देकर कहा, कि इसका कोई लक्ष्य नहीं है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीयकरण एक प्रक्रिया है और यह रातोरात नहीं हो सकता।
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, एक अधिकारी ने कहा, कि "हमें इस बात का ध्यान रखना होगा, कि इससे (रुपया निपटान) लागत में वृद्धि न हो और व्यापार के लिए किसी भी तरह से हानिकारक न हो।"
अधिकारी ने कहा, कि "जहां रकम बड़ी नहीं है, वहां रुपये में व्यापार निपटाने में ज्यादा समस्या नहीं होती है, लेकिन जब आपके पास कच्चे तेल के प्रत्येक जहाज की कीमत लाखों डॉलर होती है, तो समस्याएं होती हैं।"
उन्होंने कहा, भारत व्यापक राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए स्थिति से निपट रहा है।
रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण से डॉलर की मांग कम करने में मदद मिलेगी और भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक मुद्रा झटकों के प्रति कम संवेदनशील हो जाएगी।
पिछले सप्ताह संसद में पेश की गई एक संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, कि भारतीय रुपये को खरीदने वाले ज्यादा लोग नहीं हैं। अधिकारियों ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए स्थिति सही है और इस साल रुपये में व्यापार हुआ है।