रिपोर्ट राजेश कुमार यादव
चीन
इस रोग के मद्देनजर यहां भी केंद्र सरकार ने अलर्ट जारी किया है। इस बीच एम्स के डॉक्टर बताते हैं कि चीन में फैली बीमारी से यहां ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है।
क्योंकि अब तक किसी नए वायरस या पैथोजन के कारण संक्रमण फैलने की बात सामने नहीं आई है।
अब तक जो बातें सामने आई हैं उसके अनुसार पुराने वायरस और बैक्टीरिया के कारण ही बच्चों के फेफड़े में संक्रमण और निमोनिया की बीमारी हो रही है। इसलिए ज्यादा घबराने की जरूर नहीं है लेकिन सतर्कता जरूरी है।
एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. संजय राय ने बताया कि अभी तक चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की तरफ से जो बातें बताई गई हैं, उसके अनुसार यहां संक्रमण फैलने का खास खतरा नहीं है। चीन की तरफ से रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस (आरएसवी), इन्फ्लूएंजा व माइकोप्लाज्मा निमोनिया के संक्रमण होने की बात बताई गई है। यह पुराने वायरस और बैक्टिरिया हैं।
माइकोप्लाज्मा निमोनिया का भी एंटीबायोटिक से इलाज किया जा सकता है। इसलिए ज्यादा मौतें भी नहीं हो रही है। यहां भी इस तरह के संक्रमण होते हैं। फिर भी सतर्कता और अस्पतालों में तैयारी जरूरी है। क्योंकि चीन का कोई भरोसा नहीं है। वैसे कोई नया वायरस होगा तभी समस्या होगी।
एम्स के पीड़ियाट्रिक विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एसके काबरा ने कहा कि सीजन इन्फ्लूएंजा और निमोनिया की बात ही सामने आ रही है। मौसम बदलने और ठंड में ऐसी बीमारियां होती हैं। ज्यादातर मरीज पांच से सात दिन में ठीक हो जाते हैं।
अस्पताल में इन्फ्लूएंजा और निमोनिया के इलाज के लिए ऐसे मौसम में हमेशा तैयारी रखी जाती है। सफदरजंग अस्पताल के प्रिवेंटिव कम्युनिटी मेडिसिन के निदेशक प्रोफेसर डॉ. जुगल किशोर ने कहा कि कोरोना वयस्क लोगों को अधिक हो रहा था।
वयस्क लोग यात्राएं अधिक करते हैं। छोटे बच्चे विदेशों से ज्यादा यात्राएं नहीं करते। इसलिए कोरोना की तरफ चीन से दूसरे देशों में संक्रमण फैलने का खतरना नहीं दिखता। इन्फ्लूएंजा ए के एच9एन2 वायरस का संक्रमण वहां फैलने की बात कही हा रही है। यह वायरस पक्षियों से अधिक फैलता है। इसके मामले पहले कई देशों में आ चुके हैं।