राजेश कुमार यादव की कलम से
1206 ईसवी में कामरूप (असम) में एक जोशीली आवाज गूंजती है...
"बख्तियार खिलज़ी तू ज्ञान के मंदिर नालंदा को जलाकर #कामरूप (असम) की धरती पर आया है... अगर तू और तेरा एक भी सिपाही ब्रह्मपुत्र को पार कर सका तो मां चंडी (कामातेश्वरी) की सौगंध मैं जीते-जी अग्नि समाधि ले लूंगा"... राजा पृथु
और , उसके बाद 27 मार्च 1206 को असम की धरती पर एक ऐसी लड़ाई लड़ी गई जो मानव #अस्मिता के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है.
एक ऐसी लड़ाई जिसमें किसी फौज़ के फौज़ी लड़ने आए तो 12 हज़ार हों और जिन्दा बचे सिर्फ 100....
जिन लोगों ने #युद्धों के इतिहास को पढ़ा है वे जानते हैं कि जब कोई दो फौज़ लड़ती है तो कोई एक फौज़ या तो बीच में ही हार मान कर भाग जाती है या समर्पण करती है...
लेकिन, इस लड़ाई में 12 हज़ार सैनिक लड़े और बचे सिर्फ 100 वो भी घायल....
ऐसी मिसाल दुनिया भर के इतिहास में संभवतः कोई नहीं....
आज भी गुवाहाटी के पास वो #शिलालेख मौजूद है जिस पर इस लड़ाई के बारे में लिखा है.
उस समय मुहम्मद बख्तियार