कोई संस्कृति समाप्त करनी है तो उससे उनके त्यौहार छीन लो,और यदि कोई त्यौहार समाप्त करना है तो उससे बच्चों का रोमांच गायब कर दो। कितना महीन षड्यंत्र है? कितना साफ और दीर्घकालिक जाल बुना जाता है? समझिए दीपावली पर पटाखे बैन के षड्यंत्र की कहानी..

A G SHAH
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राजेश कुमार यादव की कलम से

पंच मक्कार(मीडिया, मार्क्सवादी, मिचनरीज, मुलाना, मैकाले) किस तरह से सुनियोजित कार्य करते है आप इस लेख के माध्यम से जान पाएंगे. किस तरह इकोसिस्टम बड़ा लक्ष्य लेकर चलता है वो आप जान पाएंगे. वे किस तरह 10, 20 साल की योजना बनाकर स्टेप बाई स्टेप नरेटिव सेट कर शनैःशनैः वार कर किले को ढहा देते है ये आप जानेंगे. जिसमें वे आपको ही अपनी सेना बनाकर अपना कार्य करते है और आपको पता भी नही चलता।

पटाखो पर बैन की कहानी 2001 से शुरू होती है। जब एक याचिका में SC ने सुझाव दिया कि पटाखे केवल शाम 6 से 10 बजे तक मात्र चार घण्टे के लिए फोड़े जाए। साथ ही इसको लेकर जागरूकता फैलाने के लिए स्कूलों में बच्चों को बताया जाए। ये केवल एक सुझाव वाला निर्णय था ना कि पटाखे फोड़ने पर आपराधिक निर्णय. ध्यान रहे सुझाव केवल दीपावली पर ही था क्रिसमस और हैप्पी न्यूएर पर फैसले से नदारद थे. ये एक प्रकार से लिटमस टेस्ट था।

लिटमस टेस्ट सफल रहा क्योंकि हिंदुओ ने कोई विरोध नही किया हालांकि सुझाव किसी ने नही माना लेकिन उसका विरोध भी नही किया. इससे इकोसिस्टम को बल मिला और 2005 में एक और याचिका लगी। जिसमें कोर्ट ने इसबार पटाखो को ध्वनि प्रदूषण से जोड़कर आपराधिक कृत्य बना दिया अर्थात रात 10 बजे के बाद पटाखे फोड़ना आपराधिक कृत्य हो गया।

हिंदुओ ने तो भी विरोध नही किया. उधर स्कूलों के माध्यम से लगातार बच्चों के अंदर दीपावली के पटाखों से प्रदूषण ज्ञान दिया जाने लगा. बच्चे भी एक नरेटिव है. दीपावली पर पटाखे बच्चों का ही आकर्षण है। अतः उन्हें ही टार्गेट किया गया. आपको याद हो तो 2005 से स्कूलों में अचानक से पटाखा ज्ञान शुरू हो गया था. बच्चे खुद बोलने लगें पटाखे मत फोड़िये।

2010 में NGT की स्थापना हुई. जिसे प्रदूषण पर्यावरण ग्रीनरी के नाम पर केवल हिन्दू त्यौहार दिखाई दिए दीपावली, होली, अमरनाथ पर ज्ञान और फैसले देने वाला ngt क्रिसमस नए साल पर सदैव मौन रहा।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन जी ने तत्कालीन दिल्ली उपराज्यपाल नजीबजंग को चिट्ठी लिखकर दीपावली पर पटाखे बैन की अपील की लेकिन LG ने ठुकरा दी। तब 2017 में तीन NGO एक साथ SC पहुंचे जिसमें से एक ngo "आवाज" था जिसकी कर्ताधर्ता "sumaira abdulali थी. जहां तीनो ngo ने दीपावली के पटाखो को ध्वनि और वायु प्रदूषण के लिए खतरनाक बताते हुए तत्काल प्रभाव से बैन करने की मांग की। जिसमे तीनो ngo की "आवाज" से आवाज मिलाई "केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड" ने। ध्यान रहे केंद्र और राज्य सरकार दोनो ने SC में पटाखे बैन याचिका का विरोध नही किया। परिणामस्वरूप SC ने पहला बड़ा निर्णय देते हुए दिल्ली में पटाखो की बिक्री पर रोक लगा दी।

लेकिन हिंदुओ ने तब भी कोई विरोध नही किया बल्कि प्रदूषण के नाम पर समर्थन किया. क्योंकि तब हिन्दू "जागरूक" हो चुके थे। उन्हें लगने लगा दिल्ली प्रदूषण का एकमात्र कारण दीपावली के पटाखे है।

लिटमस टेस्ट में सफल होने के बाद पंचमक्कार 2018 में पुनः कोर्ट पहुंच गए। इसबार पटाखे फोड़ने पर ही बैन लगा दिया गया. लेकिन झुन झुने के रूप में ग्रीन पटाखे पकड़ा दिए. ये दूसरा लिटमस टेस्ट था।

इसबार छिटपुट विरोध हुआ लेकिन तथाकथित जागरूक हिन्दू जो आप ही थे आप ही इकोसिस्टम की सेना बनकर पटाखे बैन करने के समर्थन पर उतर गए और विरोध करने वालो को कट्टर, गंवार, अनपढ़, जाहिल, पिछड़ी सोच ना जाने क्या क्या कहकर आपने ही उनकी आवाज को दबा दिया और आपको पता ही नही चला।

धीरे धीरे खेल मीडिया से लेकर सेलिब्रिटी तक पहुंच गया। जहां दीपावली के एनवक्त पहले अचानक से प्रकट होकर क्रिकेटर/बॉलीबुड क्रेकर ज्ञान देने लगे। मीडिया में लम्बी लम्बी डिबेट्स कर ब्रेनवॉश किया गया कि दिल्ली गैस चेम्बर बन गई है जिसका एकमात्र कारण दीपावली पर जलने वाले पटाखे है जिन्हें यदि बैन नही किया गया तो दीपावली के अगले दिन सब सांस से घुटकर मर जायेंगे।

2020 में तीसरा लिटमस टेस्ट किया गया और पटाखे बैन दिल्ली से बाहर निकलकर पूरे देश मे लागू किये गए. जिसमें एक और ngo जुड़ा. जिसने नवम्बर 2020 में याचिका लगाई पटाखे बैन पर. उस ngo का नाम था indian social responsibility network...

जब आप और गहराई में जाएंगे तो पाएंगे ये एक राष्ट्रवादी ngo है। जिसमे सांसद विनय सहस्त्रबुद्धे, 2019 चुनाव के नारंगी it cell वाले सदस्य और वर्तमान में अध्यक्ष नड्डा जी की श्रीमती भी है। नतीजा ये रहा कि दिल्ली सहित पूरे देश मे पटाखे 2 घण्टे के अतिरिक्त बैन हो गए और उल्लंघन करने पर पूरे देश मे जगह जगह कार्रवाइयां हुई. इस बैन में सभी ने बराबर की भूमिका निभाई।

लेकिन चूंकि उद्देश्य प्रदूषण या पर्यावरण कम बल्कि दीपावली की परंपरा को पूर्णतः खत्म करना था अतः 2 घण्टे की ग्रीन पटाखो की छूट भी चुभ रही थी। इसबार उसे भी खत्म कर दिया गया. कुतर्क दिया गया कि भगवान राम के समय पटाखे नही थे। जबकि जरूरी नही कि परम्पराए मूल से निकले. परम्पराए बाद में जुड़कर सदियों से चलकर त्योहार का मूल हिस्सा बन जाती है जैसे क्रिसमस में क्रिसमस ट्री और अजान में लाउडस्पीकर जो मूल समय मे नही थे. लेकिन वहां कोई कुतर्क नही करता।

यही है वामपंथ की ताकत जो आपका ब्रेनबाश कर आपको जाम्बी बना देती है। जहां आप जिस डाली पर बैठे हो उसे ही काटकर(अपने ही मूल्यों को समाप्त कर) गर्व महसूस करते है।

यही है नरेटिव की ताकत जहां दीपावली का प्रदूषण चुनावी मुद्दा बन गया। जबकि पटाखे प्रदूषण के मुख्य कारकों में top 10 में भी नही है(IIT रिसर्च)। लेकिन हर पार्टी चुनाव जीतने के लिए दीपावली पटाखे बैन के समर्थन में बढ़चढ़कर हिस्सा लेने लगी। ध्यान रहे मुद्दा केवल दीपावली के पटाखे बने क्रिसमस और नए साल के नही।

यही पँचमक्कारो की ताकत है। हालत ये है कि अब राजस्थान/दिल्ली जैसे राज्य बिना कोर्ट के आदेश के बिना मंथन बिना बैठक दीपावली पर खुद ही पटाखे बैन करने लगे है जैसे कोई धारा 144 जैसा रूटीन आदेश हो लेकिन ये राज्य क्रिसमस न्यूएर पर चुप रहते है। ये हालत तब है जब राजस्थान में प्रदूषण मुद्दा नही है और हिन्दू 90% है। अब दीपावली पटाखे बैन के लिए हर साल कोर्ट जाने की भी जरूरत नही है। राज्य खुद ये करने लगे क्योंकि आपने उन्हें बल दिया।

निश्चित रूप से प्रदूषण चिंता का विषय है लेकिन उसका कारण पटाखे नहीं है और जो मुख्य कारण है उन्हें पटाखे बैन कर कर्तव्यों से इतिश्री कर ली जाती है। यदि सच मे दिल्ली बचानी है तो पटाखे बैन की नौटंकी छोड़कर ngo सरकारें विपक्ष कोर्ट को प्रदूषण के मुख्य कारकों को बैन करना होगा।

पूर्वांचली बधाई के पात्र है जिन्होंने छठ पूजा नरेटिव बनने से पहले भारी विरोध कर इसे बचा लिया वरना अगला टार्गेट छठपूजा ही था। ध्यान रहे कोई आपके साथ नही खड़ा होगा जबतक आप स्वयं अपने साथ नही खड़े है। 

दीपावली से उसका मुख्य आकर्षण पटाखा खत्म करने के लिए, बच्चों के हाथों से फुलझड़ी छिनने के लिए सब जिम्मेदार है। पंचमक्कार से लेकर नारंगी भी और आप स्वयं भी क्योंकि आप मौन रहे। पंचमक्कार नरेटिव ने होली से रंग, दीपावली से पटाखे, दशहरे से रामलीला, जन्माष्टमी से दही हांडी छीन ली या छिनने के कगार पर है।

सब मिले हुए है....

नोट: इसमें सिब्बल की कहानी शामिल नही है उसपर बहुत लिखा जा चुका है। यहां मूल जड़ बताने का प्रयास किया गया है। लेख को छोटा रखने के लिए केवल मुख्य तथ्यों को संक्षेप में रखा गया है. कुछ विषय छूट गए होंगे या तथ्यों में कुछ अंतर हो सकता है। यहाँ लेखक का मुख्य उद्देश्य केवल आपको नरेटिव और इस खेल से परिचित करवाना है ना कि किसी पर दोषारोपण...

आपसे दीवाली का रोमांच छीन लिया जएगा, होलो के रंग छीन लिए जयेंगे, करवा चौथ का उद्देश्य छीन लिया जयेगा,भैया दूज सिर्फ दूज रह जयेगी।

हर त्योहार हमारे रिस्तो की मजबूती का पल होता ह।

करवा चौथ पति पत्नी,होई अष्टमी मां और बच्चो का, राखी और भैया दूज भाई बहन,गुरु पूर्णिमा गुरु और शिष्य, दिवाली आदर्शों और नैतिक मूल्यों का,दशहरा बुराई से दूर रहने का आदि।।

कोई भी त्योहार हो हमारे सनातन में विश्वास,समर्पण और आनंद का प्रतीक होता ह।

भाई बहन का राखी हो या भाई दूज,एक दूसरे के लिए उस वक्त तक भूखे रहने दोनो के समर्पण और प्रेम का प्रतीक ह जो विवाह पश्चात भी रिस्तो की गर्माहट को बनाये रखते ह ,ये वामी और नास्तिक क्या समझेंगे।

पति पत्नी का करवा चौथ पत्नी के समर्पण और पति के मन मे आये वो भाव जिससे उसके मन मे पत्नि के प्रति सम्मान जगता ह वो नास्तिक और सनातन विरोधी क्या समझेंगे।

सनातनी त्योहार हर रिस्ते का आधार ह ,एक दूसरे के लिए बने होते ह,होई अष्टमी मां और बच्चो के प्रेम का प्रतीक ह,गुरु पूर्णिमा गुरु शिष्य, श्राद अपने बड़ो और पूर्वजो के प्रति, गंगा दशहरा,यमुना दशहरा,तुलसी पूजन दिवस,गोवर्धन पूजा,मकर सक्रांति ये सब प्रकृति के सम्मान के लिए उनको समझने और जीवन मे उतारने को होते ह।

ये सब वो वामी और नास्तिक क्या समझेंगे जिनका मूल उद्देश्य खाना पीना हगना मूतना तक सीमित ह,जो दो किताबे पढ़ स्वयम का ज्ञानी समझने लगते ह।

ये वो चीज़े ह जो तुम्हे तुम्हारी पहचान और होने का ऐहसास करवाती ह ,अगर ये सब न रहा तो आप चारो तरफ देखोगे की क्रिस्टमस मनाया जा रहा ह,ईद मनाई जा रही ह लेकिन तुम सब खो चुके हो।

आने वाली पीढ़ियों को क्या मिलेगा विरासत में सिर्फ और सिर्फ विदेशी त्योहार।

अपनी पहचान बनाई रखे,हर त्योहार को दुगने आनंद से मनाए,कोई क्या कहता ह दूर रखें,क्योंकि यही तुम्हारी पहचान ह।

सनातन पहले दिन से प्रकृति पूजन में विश्वास रखता ह ये नए साल पर अरबो का प्रदूषण करने वाले, बनावटी ट्री को पूजने वाले और पशुओं की बलि देने वाले हमे बताएंगे कि कैसे पर्यावरण और प्रकृति बचानी ह।


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