घरेलू हिंसा स्थापित नहीं हुई: कर्नाटक हाईकोर्ट ने धर्म परिवर्तन करने वाली पत्नी के दावे को खारिज किया, कहा-तलाक नहीं फिर भी "उसके सभी अधिकार रद्द" कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 की धारा 22 के तहत मुआवजा केवल तभी दिया जा सकता है जब घरेलू हिंसा साबित हो।कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 की धारा 22 के तहत मुआवजा केवल तभी दिया जा सकता है जब घरेलू हिंसा साबित हो।

A G SHAH
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राजेश कुमार यादव की रिपोर्ट

 कोर्ट ने सत्र न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पत्नी द्वारा दायर अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए उसे इस आधार पर 4,00,000 रुपये का मुआवजा दिया गया था कि वह अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है। पीठ ने यह भी कहा कि पत्नी ने स्वीकार किया है कि उसने अपना धर्म बदल लिया है, जिससे स्वत: विवाह विच्छेद हो गया, हालांकि तलाक नहीं हुआ था।

कोर्ट ने कहा,

.जब वह ईसाई धर्म में परिवर्तित हो जाती है, तो उसमें निहित सभी अधिकार निरस्त हो जाते हैं। हालांकि पार्टियों के बीच कोई तलाक नहीं है, लेकिन, पत्नी के ईसाई धर्म में धर्मांतरण को देखते हुए, यह खुलासा होता है कि विवाह भंग हो गया है। इसके अलावा, इस संबंध में किसी भी सक्षम न्यायालय द्वारा कोई विशिष्ट घोषणा पारित नहीं की गई है। हालांकि, यह स्वीकृत तथ्य है कि पत्नी ईसाई धर्म स्वीकार कर चुकी है।''

अधिनियम की धारा 12 के तहत पत्नी की ओर से दायर आवेदन में पति ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश हुआ था। उन्होंने स्पष्ट रूप से आरोपों का खंडन किया था और दावा किया था कि प्रतिवादी/पत्नी ने खुद उनका साथ छोड़ दिया है। उसकी लापरवाही के कारण, दूसरे बच्चे की मृत्यु हो गई और इसके बाद, वह ईसाई धर्म में कनवर्ट हो गई और बेटी को भी ईसाई धर्म में कनवर्ट करने का प्रयास किया। 

इसके अलावा, वह पक्षाघात से पीड़ित है और अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है और याचिका को खारिज करने की मांग की गई है।

 ट्रायल कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता/पत्नी यह स्थापित करने में विफल रही कि प्रतिवादी/पति ने घरेलू हिंसा की है और आगे कहा कि वह घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 18 से 22 के तहत परिभाषित किसी भी मौद्रिक लाभ की हकदार नहीं है और याचिका खारिज कर दी। 

पत्नी द्वारा सत्र न्यायालय के समक्ष दायर अपील में, अदालत ने भरण-पोषण से इनकार कर दिया था और पुष्टि की थी कि प्रतिवादी के खिलाफ कोई घरेलू हिंसा साबित नहीं हुई है। हालांकि, यह पाते हुए कि पत्नी अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, मुआवजा देने का आदेश दिया गया। 

पीठ ने कहा कि दोनों अदालतों ने एक साथ यह माना है कि पत्नी के खिलाफ कोई घरेलू हिंसा नहीं हुई है। इस निष्कर्ष को पत्नी द्वारा चुनौती नहीं दी गई है। इस प्रकार कोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर लिया और सत्र अदालत के आदेश को रद्द कर दिया और ट्रायल कोर्ट के आदेश को बहाल कर दिया।


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