रिपोर्ट राजेश कुमार यादव
गर्मी का मौसम जैसे-जैसे अपने चरम की ओर बढ़ता गया, पर्यावरण से जुड़ी चिंताएं और चर्चा जोर पकड़ने लगीं!यों हरियाली की जगह बढ़ाने की दिशा में लोग अपने स्तर पर कुछ प्रयास करने लगे हैं। शहर की संकरी गलियों से गुजरते हुए घरों के छज्जों पर, खिड़कियों के बाहर गमलों और लटकती टोकरियों में फूल-पौधे नजर आने लगे हैं। लेकिन इतने से क्या होता है! आंगन का थोड़ा भाग कच्चा रखने में हम अनिच्छा दिखाने लगे हैं। मिट्टी को टाइल, संगमरमर या मार्बल के बोझ तले दबाकर हम उसका दम घोंट देते हैं।प्लास्टिक के डिजाइनर गमले सजाकर फूले नहीं समाते!असाधारण रूप से बढ़े तापमान के कारण जीव-जगत में मचा त्राहिमाम हमारी चिंता का हिस्सा कब बना? सड़कों को चार-छह लेन करने के लिए सैकड़ों हजारों छायादार वृक्षों की बलि लेने वाला विकास माडल हमें अपनी गाड़ियों के लिए बहुत अच्छा लगता है!हमारे वातानुकूलित या एसी कमरों के बाहर हवा की बढ़ती तपिश को झेलता हुआ एक जीव-जगत भी है। हमारी संवेदनाओं के दायरे में वह कब आया? अनेक सवाल है जिन्हें विकसित भारत के जुनून में जाने कब तक अनदेखा करते रहेंगे।