मुम्बई
ललित दवे
कॉन्फडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) महाराष्ट्र प्रदेश के महामंत्री एवं अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने बताया आयकर में कई धाराएं हैं, जिसके तहत टैक्सपेयर्स कर का भुगतान करना अनिवार्य है। तो वहीं, ऐसे कई धाराएं भी हैं, जिससे टैक्सपेयर्स कर छूट के लिए क्लेम भी कर सकते हैं। लेकिन एक धारा ऐसी है, जिसके तहत अगर छोटे उद्यमी से खरीद के बाद व्यापारी अगर सही वक्त पर भुगतान नहीं करता है, तो वो आय से जुड़ जाएगा और जिस पर उसे टैक्स भरना पड़ सकता है।
पिछले वर्ष बजट में लागू की गई धारा 43B के तहत अगर छोटे उद्यमी जिसने एमएससी में के तहत उद्यम आधार में पंजीकृत किया है से खरीद के बाद व्यापारी अगर सही वक्त पर भुगतान नहीं करता है, तो वो आय से जुड़ जाएगा और जिस पर उसे टैक्स भरना पड़ेगा। ये प्रावधान छोटे उद्यमियों को फायदा और व्यापारियों पर नकेल कसने के मकसद से लागू की गई थी।
केंद्र सरकार ने आकलन वर्ष 2024-25 के लिए इस नए नियम को लागू कराया जिसके तहत खरीदारों को डिलीवरी के 45 दिनों के भीतर एमएसएमई से खरीदे गए सामान का भुगतान करना होगा और 31 मार्च, 2024 से पहले सूक्ष्म, लघु और मध्यम इकाई (MSME) को सभी बकाया चुकाना होगा, ऐसा न करने पर लंबित भुगतान माना जाएगा और बकाया भुगतान राशि व्यापारी की आय में जोड़ दी जाएगी और टैक्स के दौरान आय से इसे वसूल लिया जाएगा। आसान भाषा में समझें तो अगर छोटे उद्यमी ने अपना माल किसी दूसरे बड़े संस्थान, एजेंसी या किसी कंपनी को सप्लाई किया है, तो उस एमएसएमई निर्माता का भुगतान 45 दिनों के अंदर इन्हें करना ही होगा। साथ ही अगर मार्च माह में माल खरीदा है तो उसका भुगतान भी उसी वित्तीय वर्ष में करना होगा। ऐसा नहीं कर पाने पर बड़े व्यापारी, कंपनी या संस्थान को टैक्स का भुगतान करना पड़ेगा।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार ने ऐसा नियम इसलिए लाया है, क्योंकि पहले भुगतान के लिए छोटी कंपनियों को काफी भटकना पड़ता था। बड़ी-बड़ी कंपनियां अपनी सुविधा के अनुसार भुगतान करती थीं। इसके चलते एमएसएमई उद्यमियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में अगर कोई भी एमएसएमई रजिस्टर्ड है तो उसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि उसका भुगतान 45 दिनों के अंदर करना ही होगा। छोटी इकाइयों के लिए यह काफी फायदेमंद नियम साबित हो रहा है।
शंकर ठक्कर ने आगे बताया दूसरी तरफ कुछ व्यापार में भुगतान का समय आपसी सहमति से कई महीनो तक होता है उनके लिए यह धारा गले की हड्डी बन गई है ऐसे में अगर भुगतान न होने पर यदि उनकी आय में इसे जोड़ा जाता है तो पूरा व्यापार ही खत्म हो सकता है इसके लिए सरकार ने इस विषय पर पुनर्विचार कर संशोधन कर लागू करना चाहिए।